
पूर्वी चंपारण ।बिना सड़े पौधों का वह भाग जिसे हम मिट्टी में मिलाकर हरी खाद के रूप में उपयोग कर सकते हैं हरी खाद जैविक खेती का एक महत्वपूर्ण अवयव है इसका मुख्य उद्देश्य वायुमंडलीय नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर करना एवं मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को बढ़ाना है।उक्त बाते जिला के परसौनी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा विशेषज्ञ डा.आशीष राय ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत के दौरान कही।
उन्होने कहा कि असंतुलित रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण दिन प्रतिदिन मिट्टी की सेहत खराब हो रही है जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति का क्षरण हो रहा है। ऐसे में हरी खाद मिट्टी की सेहत के लिए बेहतर विकल्प है। हरी खाद मिट्टी को 17 पोषक तत्वों की आपूर्ति करने में सहायता करता है,साथ ही मिट्टी में हार्मोन तथा विटामिन की मात्रा भी बढ़ाता है। उन्होने बताया कि दलहनी फसलों को उनके वानस्पतिक वृद्धि काल में फूल आने के तुरंत बाद जुताई करके मिट्टी में अपघटन के लिए मिलाकर हरी खाद बनाया जा सकता है।
खाद के लिए किन दलहनी फसलों का करे चुनाव
हरी खाद के लिए दलहनी फसलें कृषि जलवायु प्रक्षेत्र के अनुसार ली जाती है। ये फसलें कम समय में ही बहुतायत मात्रा में कार्बनिक पदार्थ उपलब्ध कराती है। दलहनी फसलों की वृद्धि शीघ्र होती है जिसके कारण खरपतवार की वृद्धि नहीं हो पाती है तथा मिट्टी में शीघ्र ही सड़ने योग्य हो जाती है। जिसमे प्रमुख हरी खाद के लिए ढैंचा, सनई, लोबिया, ग्वार, उड़द और मूंग को शामिल किया जा सकता है। गन्ने की खेती में गन्ना एवं सनई की फसल को साथ लगाने से 40-50 दिन बाद गन्ने में मिट्टी में चढ़ाने के समय सनई को मिट्टी में मिला कर हरी खाद बनाया जा सकता है।
हरी खाद मिट्टी में कब मिलाये
दलहनी फसलों की जड़ों में जब गुलाबी/लाल ग्रंथियों का निर्माण होने की दशा में उसको पलट कर मिट्टी में मिला देना चाहिए।
मूंग में फलियों की तुड़ाई के पश्चात उसकी जुताई कर मिट्टी में मिलाकर हरी खाद तैयार कर सकते है।इसके लिए जुताई 15-20 सेमी की गहराई पर करे और फसल को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत को पानी से भर देना चाहिए क्योंकि ज्यादा दिन हो जाने पर कड़ा हो जाने से इसके अपघटन की क्रिया सुचारू रूप से नहीं हो पाती है।फसल को मिट्टी में पलटने के पश्चात उसमें धान की रोपाई करे ऐसा करने से दोहरा लाभ मिलता है।क्योकी धान में नत्रजन की पूर्ति करने हेतु यूरिया का छिड़काव किया जाता है, उस क्रिया से हरी खाद की फसल के अपघटन में समय मिलता है।
धान की फसल की पैदावार के साथ ही साथ अगली फसल के लिए पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ उपलब्ध हो जाता है और मृदा संरचना में सुधार होता है तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी उपलब्धता बढ़ जाती है।
हरी खाद उपयोग के मायने
बुवाई सही समय पर तथा सही बीज का उपयोग करना चाहिए। मुख्य फसल से प्रतियोगिता ना हो इसका ध्यान रखा जाए फूल आने के पहले कटाई की जाए।
पौधे के छोटे-छोटे टुकड़े में कटाई करनी चाहिए।
मिट्टी में इसे अच्छे से दबा देना चाहिए। हरी खाद को मिट्टी में दबाने के 2 सप्ताह के अंदर मुख्य फसल की बुवाई करनी चाहिए ताकि आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व का नुकसान न हो।
हरी खाद से होने वाले प्रमुख लाभ
इससे मिट्टी में भौतिक एवं रासायनिक संरचना अच्छी होती है जिससे पानी का संचयन होता है। हरी खाद वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन को स्थिर करता है जिससे रासायनिक उर्वरकों की निर्भरता कम होती है। हरी खाद मिट्टी में गहरी जरी विकसित करता है जिसके कारण मिट्टी में वायु संचार अच्छा होता है और फंगस की बीमारी कम लगती है। सूक्ष्मजीवों के लिए यह खाद्य पदार्थ का काम करता है जो इन्हें खाकर बहुत तेजी से अपनी संख्या को बढ़ाते हैं जिससे अपघटन तेजी से होती है। हल्की तथा भारी दोनों प्रकार की मिट्टियों में कार्बनिक पदार्थ की वृद्धि से उपज में वृद्धि के साथ-साथ मिट्टी में हयूमस की मात्रा बढ़ने के कारण जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है और पोषक तत्व भरपूर मात्रा में मिलता है। साथ ही यह अनावश्यक खरपतवारों को पनपने नहीं देता है जिससे मुख्य पौधा तेजी से बढ़ता है।
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