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40 साल के बाद मां बनने के लिए इन बातों का रखना होता है ख़ास ध्यान

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Vicky Kaushal/Insta कैटरीना कैफ़ और उनके पति विक्की कौशल ने कहा है कि वे जल्द ही माता-पिता बनने जा रहे हैं, जिसके बाद इस चर्चा ने ज़ोर पकड़ा कि 40 साल के बाद मां बनना महिलाओं के लिए कितना मुश्किल होता है

हाल ही में बॉलीवुड अभिनेत्री कैटरीना कैफ़ और अभिनेता विक्की कौशल ने एक तस्वीर शेयर करते हुए बताया कि वो दोनों जल्द ही मम्मी-पापा बनने वाले हैं.

दोनों के फ़ैन्स ने उन्हें ढेर सारी बधाइयां दीं और चर्चा इस पर भी होने लगी कि कैटरीना कैफ़ 42 साल की उम्र में मां बनने जा रही हैं.

हालांकि, कैटरीना अकेली ऐसी महिला नहीं हैं जो व्यक्तिगत या व्यावसायिक उपलब्धियां हासिल करने के बाद अपना परिवार आगे बढ़ाने जा रही हैं.

2013 में, अमेरिकी अभिनेत्री हैली बेरीने 47 साल की उम्र में एक बच्चे को जन्म दिया था. लेकिन 40 या उसके बाद की उम्र में मातृत्व कई तरह की शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियों के साथ आता है.

हमने 40 की उम्र के बाद मां बनने के दौरान किन बातों का ख़ास ख़याल रखना चाहिए, इसे समझने के लिए दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मैक्स सुपर स्पेशियलिटी में स्त्री एवं प्रसूति विभाग के डॉक्टर एसएन बसु और अमृतसर के अमनदीप अस्पताल में वरिष्ठ डॉक्टर शिवानी गर्ग से बात की.

किन बातों का रखें ख़याल? image Getty Images 40 की उम्र में मातृत्व के दौरान ख़ास एहतियात बरतनी होती हैं (सांकेतिक फ़ोटो)

डॉ. एसएन बसु और डॉ. शिवानी गर्ग का कहना है कि इस उम्र में मां बनने के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना होता है.

हाई ब्लड प्रेशर : 40 की उम्र के बाद उच्च रक्तचाप की आशंका बढ़ जाती है और ये स्थिति मां और बच्चे दोनों के लिए ख़तरनाक हो सकती है. इसलिए नियमित तौर पर ये जांचना ज़रूरी हो जाता है कि कहीं रक्तचाप ज़्यादा तो नहीं है.

जेस्टेशनल डायबिटीज़ मेलिटस: इसका मतलब है कि गर्भावस्था के दौरान शुगर लेवल बढ़ जाता है. अगर मां को डायबिटीज़ है, तो ऐसी स्थिति में कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं. इसका असर बच्चे की संरचना पर पड़ सकता है, बच्चे का वज़न बहुत बढ़ सकता है, बच्चे के आस-पास पानी की मात्रा बढ़ सकती है. प्रसव के बाद, बच्चे को पीलिया हो सकता है.

इसके अलावा विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि इस उम्र में गर्भपात की आशंका लगभग 30-40 प्रतिशत बढ़ जाती है.

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गर्भ में पल रहे भ्रूण पर प्रभाव image Getty Images गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को डॉक्टर से रेगुलर चेकअप कराना चाहिए

शिशु में जन्मजात विकृतियां: इसका मतलब है कि शिशु की संरचना प्रभावित हो सकती है. 40 साल की आयु में गर्भावस्था के दौरान, शिशु का विकास ठीक से नहीं होने की आशंका रहती है.

शिशु के विकास से जुड़ी समस्याएं: इस उम्र में गर्भावस्था के दौरान, गर्भ में शिशु का विकास ठीक से नहीं हो पाता और प्रसव तक उसका वज़न भी ठीक से नहीं बढ़ पाता. प्लेसेंटा (इसे भ्रूण की पोषक थैली भी कहते हैं जिसके एक सिरे से गर्भनाल जुड़ी होती है और दूसरा सिरा बच्चे की नाभि से) से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं. इसमें प्लेसेंटा का ठीक से विकास नहीं होना और उसमें रक्त की आपूर्ति भी ठीक से नहीं होना, जैसी दिक्कतें भी शामिल हैं.

क्रोमोसोम संबंधी असामान्यताएं: जब मां की उम्र 40 वर्ष से अधिक हो जाती है, तो बच्चे में मानसिक विकारों का ख़तरा लगभग तीन गुना बढ़ जाता है.

डॉ. बसु का कहना है कि 40 वर्ष की आयु में डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे होने का जोखिम लगभग 100 में से 1 रहता है.

क्या जोख़िम कम किया जा सकता है? image Getty Images गर्भावस्था के दौरान तनाव से बचने की कोशिश करनी चाहिए

विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि, आयु-संबंधी जोख़िमों को समाप्त नहीं किया जा सकता, लेकिन समय-समय पर जांच और हेल्दी लाइफ़स्टाइल इसे कम करने में सहायक होते हैं.

डॉ. एसएन बसु बताते हैं, ''डिलीवरी से पहले डॉक्टर से रेगुलर चेकअप कराने से ये जोख़िम कम हो सकता है. साथ ही इस दौरान ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर भी कंट्रोल में रखना होगा. वजन पर नियंत्रण पाना होगा. और डॉक्टरों की ओर से दी जाने वाली दवाइयां लेनी होंगीं. ख़ासकर फोलिक एसि़ड लेने पर ख़ास ध्यान देना होगा. ध्रूमपान और शराब पर नियंत्रण रखना होगा या इन्हें कम करना होगा.''

डॉ. बसु के मुताबिक़, '' हल्की से मध्यम गतिविधि जिनमें चलना, तैरना और प्रसव पूर्व योग शामिल है की इजाज़त दी जा सकती है. लेकिन स्पोर्ट्स से दूर रहना चाहिए क्योंकि इसमें काफ़ी ज़्यादा शारीरिक गतिविधियों की ज़रूरत होती है. ''

डॉ. बसु कहते हैं कि इसके अलावा स्ट्रेस यानी तनाव से बचना चाहिए. ऐसा करने के लिए पर्याप्त नींद लेनी चाहिए.

उनका कहना है कि सेल्फ मेडिकेशन या खुद ही विटामिन की गोलियां लेने से भी बचना चाहिए, डॉक्टर की सलाह पर ही महिलाओं को ये गोलियां लेनी चाहिए.

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40 की उम्र के बाद मां बनना क्यों जोख़िम भरा

डॉ. बसु कहते हैं, "40 साल की उम्र के बाद औरतों की बच्चे पैदा करने की क्षमता तेज़ी से कम होने लगती है. आम तौर पर 40 साल की उम्र में मेन्स्ट्रुअल साइकल के दौरान प्राकृतिक तरीके से गर्भ ठहरने की संभावना सिर्फ़ 5 फ़ीसदी तक रह जाती है और इसके बाद ये और भी घटती जाती है.

डॉ. शिवानी भी इस बात से सहमत हैं और वो कहती हैं, "ओवेरियन रिज़र्व, जिसे सीरम एएमएच (एंटी-मुलरियन हार्मोन) टेस्ट भी कहते हैं, इसमें यह देखा गया है कि जब भी 40 साल के बाद यह टेस्ट किया जाता है, तो यह अपनी सामान्य सीमा से काफ़ी कम होता है और शरीर मेनोपॉज़ की ओर बढ़ रहा होता है. यह टेस्ट महिला के अंडों की गुणवत्ता की जांच के लिए किया जाता है."

image BBC

डॉ. शिवानी यह भी कहती हैं कि यह सब आपकी जीवनशैली पर निर्भर करता है. 30 की उम्र में भी सीरम एएमएच का स्तर काफी कम और 40 की उम्र में ज़्यादा हो सकता है. ये अलग-अलग महिलाओं में अलग-अलग हो सकता है.

जहां तक मदद लेने की बात है तो डॉ. बसु सुझाव देते हैं, "यदि महिलाओं की उम्र 40 साल या उससे अधिक है और छह महीने के प्रयास के बाद भी वह गर्भवती नहीं हुई हैं, तो किसी फर्टिलिटी एक्सपर्ट से परामर्श लेना चाहिए."

डॉ. शिवानी सुझाव देती हैं कि यदि आप 40 की उम्र में मां बनना चाहती हैं, तो आपको अपने सभी मेडिकल टेस्ट करवाने चाहिए, जिसमें कंप्लीट ब्लड काउंट, केएफटी, एलएफटी, ब्लड शुगर, थायरॉइड, सीरम एएमएच और गर्भाशय और अंडाशय का अल्ट्रासाउंड शामिल है.

डॉ. शिवानी यह भी कहती हैं, "पुरुषों को भी अपने सभी टेस्ट करवाने चाहिए. अगर उनकी उम्र भी 40 साल से ज़्यादा है, तो उन्हें अपने वीर्य की गुणवत्ता की जांच करवानी चाहिए."

इसके अलावा, विशेषज्ञों का कहना है कि साइंस की दुनिया में हुई तरक्की ने बहुत कुछ संभव कर दिया है और विभिन्न तकनीकों की मदद से संभावित समस्याओं का पता लगाया जा सकता है.

इनमें टेस्ट और स्क्रीनिंग शामिल हैं.

प्रसव से पहले जरूरी जांच image Getty Images प्रसव से पहले डॉक्टर से जांच जरूर करानी चाहिए.
  • क्रोमोसोमल समस्याओं के लिए नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग (एनआईपीटी)
  • पहली तिमाही यानी फर्स्ट ट्राइमेस्टर स्क्रीनिंग (खून की जांच और न्युकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन)
  • ज़रूरत पड़ने पर एम्नियोसेंटेसिस या कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (सीवीएस)

संभावित समस्याओं के संकेत और इलाज

डॉ. बसु कहते हैं कि गर्भावस्था के दौरान नीचे गए लक्षण दिख सकते हैं.

  • पेट में बहुत तेज़ दर्द या ज़ोर की ऐंठन
  • ज़्यादा ब्लीडिंग या पानी जैसा तरल निकलना
  • तेज़ सिरदर्द, धुंधला दिखना या अचानक सूजन आना (ये प्री-एक्लेम्पसिया का संकेत हो सकता है)
  • बच्चे की हलचल कम होना या बिल्कुल महसूस न होना (20 हफ़्ते के बाद)
  • लगातार तेज़ बुखार रहना या संक्रमण के लक्षण दिखना

उनका कहना है कि अगर ऐसी स्थिति आती है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.

  • दिल की बीमारियों को तुरंत पहचान लेगी ये तकनीक
  • वक़्त देखकर खाना खाने या भूखे रहने वाले ध्यान दें
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क्या माँ बनने के लिए कोई 'नेचुरल' उम्र है? image Getty Images बढ़ती उम्र के साथ प्रजनन क्षमता घट जाती है. इससे मां बनने में जोख़िम हो सकता है

उम्र प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले सबसे बड़े कारकों में से एक है और महिलाओं में प्रजनन आयु 20 से 35 वर्ष के बीच मानी जाती है और 35 वर्ष से प्रजनन क्षमता में गिरावट आने लगती है.

डॉ. बसु कहती हैं कि यह ध्यान देने योग्य बात है कि भारतीय महिलाओं में मेनोपॉज़ की उम्र पश्चिमी महिलाओं की तुलना में कम है. भारतीय महिलाओं में मेनोपॉज़ की उम्र जहां 45 से 49 वर्ष के बीच है, वहीं दुनिया के बाकी हिस्सों में यह 51 साल है.

डॉ. बसु के अनुसार, "प्राकृतिक रूप से, प्रजनन क्षमता 20 से 30 वर्ष की आयु के बीच सबसे अधिक होती है, और 35 वर्ष की आयु के बाद जोखिम लगातार बढ़ता जाता है. हालांकि, 40 वर्ष की आयु के बाद, ये जोखिम और भी तेजी से बढ़ने लगते हैं."

साथ ही, डॉ. बसु और शिवानी गर्ग ये भी कहते हैं कि मां बनने के लिए कोई यूनिवर्सल रूप से लागू 'सही' उम्र नहीं है.

यह व्यक्तिगत स्वास्थ्य, तैयारी, सपोर्ट सिस्टम और व्यक्तिगत परिस्थितियों पर निर्भर करता है. कई महिलाएं, उचित देखभाल के साथ, 40 वर्ष की आयु के बाद भी मां बन सकती हैं.

डॉ. बसु के मुताबिक़

  • 20 साल की उम्र में महिलाएं प्रजनन क्षमता के शीर्ष पर होती हैं.
  • 30 साल की उम्र अक्सर तैयारी और प्रजनन स्वास्थ्य के बीच संतुलन प्रदान करती है. लेकिन यह ध्यान देना ज़रूरी है कि 35 के बाद प्रजनन क्षमता में गिरावट आनी शुरू हो जाती है.
  • 40 साल की उम्र में कंसीव करना सामान्य होता जा रहा है और यह संभव भी है, लेकिन इसके लिए अक्सर डॉक्टरी निगरानी और कुछ मामलों में प्रजनन सहायक तकनीकों की आवश्यकता होती है.

यहां सबसे ज़रूरी ये है कि बच्चा पैदा करने के सही समय का निर्णय नितांत रूप से व्यक्तिगत निर्णय है और इसे अपनी शारीरिक, मानसिक और जीवनशैली के आधार पर ही लिया जाना चाहिए न किसी दबाव में.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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