ब्रिटेन हिंद महासागर में मौजूद चागोस द्वीप मॉरीशस को लौटाने पर राज़ी हो गया है.
लेकिन वो इसी द्वीप समूह के डिएगो गार्सिया टापू पर अपने सैन्य अड्डे का संचालन करता रहेगा.
ब्रिटेन इसके बदले मॉरीशस को सालाना 10 करोड़ पाउंड देगा. अगले 99 साल तक डिएगो गार्सिया ब्रिटेन के पास रहेगा.
इस समझौते के बाद बाक़ी सभी द्वीपों पर मॉरीशस की संप्रभुता बहाल हो जाएगी.
चागोस द्वीपसमूह के सबसे बड़े टापू डिएगो गार्सिया पर ब्रिटेन और अमेरिकी सेनाओं का सामरिक रूप से अहम नौसैनिक और बमवर्षक अड्डा है.
मॉरीशस में इस फ़ैसले के बाद जश्न का माहौल है. देश के प्रधानमंत्री ने कहा है कि इस द्वीपसमूह पर हमेशा से ही उनका अधिकार था जो उन्हें अब हासिल हो गया है.
भारत ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है. विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि भारत हिंद महासागर में मॉरीशस और दूसरे समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध है.
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वहीं, ब्रिटेन ने कहा कि यह कदम अमेरिकी-ब्रिटिश सैन्य अड्डे के भविष्य को सुनिश्चित करता है जो कि सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
इसी फौजी अड्डे की वजह से डिएगो गार्सिया अब भी ब्रिटेन-अमेरिका के नियंत्रण में रखा जाएगा.
चागोस द्वीप पर कब्ज़े के लिए ब्रिटेन और मॉरिशस के बीच अरसे से खींचतान चल रही थी. अब समझौते की शर्तों के मुताबिक़ मॉरीशस को चागोस द्वीप की संप्रभुता मिल जाएगी.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर ने इस समझौते को अपनी सरकार की उपलब्धि करार दिया है. लेकिन विपक्षी कंज़र्वेटिव पार्टी ने कहा है कि इस समझौते से ब्रिटेन के लिए चीन का ख़तरा बढ़ गया है.
कंज़र्वेटिव पार्टी ने चीन और मॉरीशस के संबंधों की ओर इशारा करते हुए ये आरोप लगाया है. हाल के दिनों में चीन और मॉरीशस की नज़दीकियां बढ़ी हैं.
कहां है चागोस द्वीप समूह, ब्रिटेन को कैसे मिला था
चागोस द्वीप समूह हिंद महासागर में बने 60 द्वीपों की एक श्रृखंला है. ये द्वीपसमूह हिंद महासागर के बीच मालदीव के दक्षिण में स्थित है.
चागोस साल 1814 से ब्रिटेन के कब्ज़े में था लेकिन बाद में इस पर फ़्रांस का नियंत्रण हो गया.
ब्रिटेन ने 1968 में चागोस द्वीप को मॉरीशस से 30 लाख पाउंड में खरीद लिया था. मॉरीशस पहले ब्रिटेन का उपनिवेश था.
मॉरीशस का कहना था कि ब्रिटेन ने चागोस द्वीप लेकर उससे आज़ादी की कीमत वसूली है.
इसके बाद चागोस द्वीपसमूह को ब्रिटेन और अमेरिकी सैन्य अड्डे के लिए खाली कराया गया.
यहां से बड़ी तादाद में लोग मॉरीशस और सेशेल्स चले गए.
ब्रिटेन ने यहां के लोगों को वेस्ट ससेक्स के क्रॉले में भी बसने का न्योता दिया था. कुछ चागोसवासियों ने ये विकल्प चुना.
अमेरिकी सेना ने चागोस द्वीपसमूह के एक द्वीप डिएगो गार्सिया का इस्तेमाल वियतनाम युद्ध से लेकर इराक और अफ़ग़ानिस्तान में अपने सैन्य ऑपरेशनों के लिए किया है.
ब्रिटेन और अमेरिका दोनों, अपनी सामरिक और सैन्य क्षमता के लिए इसे अहम मानते हैं. हाल में यमन के हूती विद्रोहियों पर हमले के लिए अमेरिका ने यहां बी-2 स्पिरिट बमवर्षक विमान तैनात किए थे.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते का स्वागत किया है.
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि इससे डिएगो गार्सिया में ब्रिटेन के साथ चल रहा उनका सैन्य अड्डा लंबे समय तक बरक़रार रहेगा.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर ने बताया कि उन्होंने मॉरीशस के साथ ये समझौता करने का फ़ैसला क्यों किया.
उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ब्रिटेन को इस पर जल्द फ़ैसला करना था नहीं तो मॉरीशस की सरकार क़ानूनी कार्रवाई के ज़रिए डिएगो गार्सिया में हस्तक्षेप कर सकती थी.
उन्होंने कहा, "हम दूसरी किसी ताक़त के डिएगो गार्सिया के मामले में दख़ल देने का ख़तरा मोल नहीं ले सकते थे. अगर हम ये समझौता नहीं करते तो चीन या कोई दूसरा देश इसके बाहरी इलाके में अपना सैन्य अड्डा बना लेता. ये भी मुमकिन है कि कोई हमारे अड्डे के नजदीक अपना संयुक्त सैन्य अभ्यास करता. कोई भी जिम्मेदार सरकार ऐसा नहीं होने दे सकती."
दरअसल इस समझौते के मुताबिक़ डिएगो गार्सिया के चारों ओर 24 मील का क्षेत्र बफ़र ज़ोन होगा, जहां ब्रिटेन की सहमति के बगैर कोई निर्माण नहीं हो सकता.
मॉरीशस के साथ ब्रिटेन ने 99 साल की लीज का जो समझौता किया है उसे 40 साल और बढ़ाया जा सकता है.
असल में ब्रिटेन और अमेरिका को यहां से सबसे ज्यादा ख़तरा चीन से था.
इन देशों को लगता है कि अगर उन्होंने डिएगो गार्सिया को छोड़ दिया तो चीन यहां तुरंत अपना सैन्य अड्डा बना लेगा और हिंद महासागर में उनकी सुरक्षा कमजोर हो जाएगी.
डिएगो गार्सिया का मिलिट्री बेस ब्रिटेन और अमेरिका के सैन्य अभियानों के लिए काफ़ी अहम है.
हाल के दिनों में जिस तरह से मॉरीशस और चीन की नज़दीकियां बढ़ी हैं, उससे ब्रिटेन और अमेरिका की आशंका में बढ़ोतरी हुई है.

मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम ने इस समझौते को एक राष्ट्र के तौर पर अपने देश की बड़ी जीत करार दिया है.
उन्होंने कहा, ''हमें एक दिन डिएगो गार्सिया समेत पूरे चागोस की संप्रभुता हासिल करनी ही थी. चागोस के लोग एक बार फिर अपने यहां बस सकेंगे."
इस क़ानूनी जीत के बाद मॉरीशस में जश्न का माहौल है. इसे मॉरीशस के राष्ट्रवाद की जीत बताया जा रहा है.
डिएगो गार्सिया के कुछ लोग चागोस द्वीप समूह के मॉरीशस में जाने का विरोध भी करते रहे हैं.
मॉरीशस में शामिल होने के ख़िलाफ़ बर्नाडेट डुगास और ब्रट्रिश पोम्प नाम की दो महिलाओं ने कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी. इन महिलाओं के वकीलों ने कहा कि चागोस के लोगों को इस द्वीप का भविष्य तय करने से महरूम रखा गया है.
भारत ने क्या कहापर ब्रिटेन और मॉरीशस के समझौते का स्वागत किया है. भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है, ''लंबे समय से चागोस विवाद को खत्म करने वाला ये द्विपक्षीय समझौता मील का पत्थर है. ये इस क्षेत्र के लिए एक सकारात्मक कदम है. यह अक्टूबर 2024 में दोनों पक्षों के बीच बनी समझ के मुताबिक़ है. ये अंतरराष्ट्रीय कानून और नियम-आधारित व्यवस्था की भावना के मुताबिक़ मॉरीशस को उपनिवेशीकरण से मुक्त करने की प्रक्रिया का प्रतीक है.''
विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत ने हमेशा मॉरीशस के चागोस द्वीप समूह पर सही दावे का समर्थन किया है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "मॉरीशस के एक दृढ़ और दीर्घकालिक साझेदार तौर पर भारत समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को मज़बूत करने और हिंद महासागर क्षेत्र में शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए तैयार है. भारत हिंद महासागर में मॉरीशस और दूसरे समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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