अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की शुक्रवार को हुई मुलाक़ात पर पूरी दुनिया की नज़र थी.
ऐसी मुलाक़ातें आम तौर पर काफ़ी सुर्ख़ियां बटोरती हैं. ये मुलाक़ातें दोनों नेताओं के दिलचस्प, अप्रत्याशित और उन निजी रिश्तों की झलक भी दिखाती हैं, जिन पर पूरी दुनिया की सतर्क निगाह होती है.
अलास्का में हुई मुलाक़ात के दौरान हवाई अड्डे पर रेड कार्पेट बिछाकर पुतिन का स्वागत किया गया. दोनों नेताओं ने गर्मजोशी से हाथ मिलाया. इसके बाद साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान पुतिन ने ट्रंप को मॉस्को आने का निमंत्रण भी दिया.
इस बीच पत्रकारों ने पुतिन से सवाल भी किए जिनका उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
ट्रंप और पुतिन के बीच मुलाक़ात कोई पहली बार नहीं हुई है. इससे पहले भी जब-जब उनकी मुलाक़ात हुई उनके हाव-भाव की चर्चा हुई.
अंदाज़ अपना-अपना
जिन पूर्व अधिकारियों ने बंद कमरे में इन दोनों में से किसी एक या दोनों नेताओं के साथ काम किया है उनका कहना है कि निजी बैठकों में दोनों का अंदाज़ एक दूसरे से काफ़ी अलग है.
ट्रंप और पुतिन की पहली मुलाक़ात जुलाई 2017 में जर्मनी में हुए जी20 शिखर सम्मेलन में हुई थी.
यह ट्रंप के व्हाइट हाउस में आने के कुछ ही महीनों के बाद की बात थी. जबकि पुतिन के पास पहले ही दशकों का राजनीतिक अनुभव था.
दुनिया के कैमरों के सामने दोनों ने गर्मजोशी से बातें कीं और प्रोफ़ेशनल अंदाज़ में हाथ मिलाया.
इससे दुनिया को लगा कि दोनों के बीच सम्मानजनक रिश्ते हैं. आने वाले कुछ वर्षों में दोनों ने एक दूसरे की तारीफ़ भी की.
हालांकि हाल ही में ट्रंप ने बीबीसी से कहा था कि यूक्रेन में ख़ून-ख़राबा हो रहा है और वह पुतिन से 'निराश' हैं.
दरअसल यूक्रेन का मुद्दा उसी पहली मुलाक़ात में उठा था, जब ट्रंप ने कहा था कि रूस अपने पड़ोसी देश को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है.
दरअसल तीन साल पहले रूस ने क्राइमिया प्रायद्वीप पर ग़ैरक़ानूनी क़ब्ज़ा कर लिया था.
अब सीधे 2025 में आते हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले का यह चौथा साल है. ट्रंप अब युद्धविराम के लिए बातचीत करके शांति स्थापित करने वाले की भूमिका निभाने को उत्सुक हैं.
बुधवार को ट्रंप ने कहा कि अगर पुतिन युद्ध ख़त्म करने के लिए नहीं माने तो 'बेहद गंभीर नतीजे' होंगे.
हालांकि कई बार उनका रुख़ नरम भी रहा है.
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2017 में ट्रंप और पुतिन एक बार फिर आमने-सामने थे. इस बार वियतनाम में एक आर्थिक सम्मेलन के दौरान.
दुनिया के दस दूसरे नेताओं के साथ उनकी बातचीत की तस्वीरें सामने आईं. और एक तस्वीर में ऐसा लगा जैसे पुतिन सीधे ट्रंप के कान में कुछ कह रहे हों.
कूटनीतिज्ञों के मुताबिक़, ट्रंप पुतिन की उस शैली से परिचित हैं, जिसमें वह लंबी और तेज़-तर्रार बातें करते हैं ताकि सामने वाले को जवाब देने के बहुत कम मौके़ मिले.
यह पुतिन की बातचीत का एक जाना-पहचाना तरीक़ा है.
2016 से 2020 तक रूस में ब्रिटेन के राजदूत रहे लॉरी ब्रिस्टो ने कहा, "पुतिन के साथ हर बैठक में बात सत्ता के इर्द-गिर्द घूमती है. पुतिन जब बात करते हैं तो विषय क्या होगा, एजेंडा कैसा होगा या लहजा क्या होगा इस पर कुछ पता नहीं होता. आपको कभी पता नहीं होता, आगे क्या होने वाला है."
उनके मुताबिक़, "ऐसी स्थिति में दुभाषियों के लिए तालमेल बिठाना मुश्किल हो जाता है और पुतिन के साथ बातचीत में ट्रंप के लिए यह बेहद ज़रूरी था कि वह अपने दुभाषिया साथ लाएं. हालांकि यह बताया जाता है कि इस साल की शुरुआत में ट्रंप के दूत स्टीव विटकॉफ़ ने अपनी एक बैठक में क्रेमलिन के दुभाषियों पर भरोसा किया था.''
ट्रंप की पूर्व सहयोगी फियोना हिल ने भी लॉरी की राय से सहमति जताई.
उन्होंने 'टेलीग्राफ़' को दिए एक इंटरव्यू में पुतिन से बातचीत के अनुभव साझा करते हुए कहा, "वह ट्रंप का मज़ाक उड़ाते हैं. वह रूसी भाषा का इस्तेमाल इस तरह करते हैं कि उसमें व्यंग्य और तंज़ छिपा होता है. अनुवाद में ये चीज़ें नहीं आ पाती हैं.''
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ट्रंप और पुतिन के बीच रिश्तों का सबसे खुला प्रदर्शन शायद जुलाई 2018 में हेलसिंकी (फ़िनलैंड) में बंद दरवाज़ों के पीछे की बातचीत के दौरान दिखा.
उस समय ट्रंप ने 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में दख़लंदाज़ी के आरोपों पर रूस का बचाव किया था और अपने ही ख़ुफ़िया एजेंसियों के आकलन को मानने के बजाय पुतिन का पक्ष लिया था.
उनके इस क़दम की अमेरिका के सभी दलों ने कड़ी आलोचना की थी.
इसी मुलाक़ात के दौरान एक यादगार और अनौपचारिक तस्वीर सामने आई, जिसमें पुतिन ने ट्रंप को रूस में आयोजित पुरुष फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप की एक फ़ुटबॉल भेंट की थी.
पूर्व ब्रिटिश राजदूत टोनी ब्रेंटन के मुताबिक़ पुतिन की ऐसी पहल हमेशा सोच-समझकर की गई होती हैं.
वह कहते हैं कि 2000 के दशक के मध्य में जिन बैठकों में वह मौजूद थे उनमें पुतिन अक्सर "पुरानी रूसी परंपरागत शिष्टता" दिखाते थे. लेकिन उसके पीछे हमेशा एक तरह की संकोच की भावना रहती थी. वह कभी भी बहुत सहज और स्वाभाविक व्यक्तित्व नहीं लगे.
उन्होंने आगे कहा, "फ़ुटबॉल, मुस्कानें, चुटकुले, ये सब… पुतिन के स्वभाव से मेल नहीं खाते. वह मिलनसार और खुले दिल वाले इंसान नहीं हैं लेकिन जब उन्हें लगता है कि रिश्ते के लिए यह ज़रूरी है, तो वह इस पर मेहनत करते हैं."
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ट्रंप और पुतिन की मुलाक़ातें आगे भी जारी रहीं. नवंबर 2018 में अर्जेंटीना में और जून 2019 में जापान में हुए जी20 शिखर सम्मेलनों में वे मिले.
जापान वाली मुलाक़ात में ट्रंप के उस समय के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन भी मौजूद थे, जिनसे बाद में उनका मनमुटाव हो गया था.
बोल्टन ने बीबीसी से कहा कि उन्हें दोनों नेताओं के बारीकियों के प्रति अलग-अलग रुझान देखकर हैरानी हुई. उन्होंने इसका कारण पुतिन के सोवियत ख़ुफ़िया एजेंसी में प्रशिक्षण को बताया.
पुतिन के बारे में बोल्टन ने कहा, "मैंने कभी भी यह नहीं देखा कि पुतिन तैयार नहीं हैं. वह हमेशा शांत, बहुत संयमित और तर्कपूर्ण अंदाज़ में अपनी बात रखते हैं और मुझे लगता है कि यह उनके केजीबी के प्रशिक्षण का हिस्सा है."
बोल्टन कहते हैं इसके उलट ट्रंप का निजी बैठकों का अंदाज़ उनके सार्वजनिक प्रेस कॉन्फ्रेंस जैसा ही था. यानी वह अक्सर बिना तय स्क्रिप्ट के बातें करते थे जो कभी-कभी उनके अपने सहयोगियों को भी चौंका देती थीं.
बोल्टन ने कहा, "वह वास्तव में इन बैठकों की तैयारी नहीं करते, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसकी ज़रूरत नहीं है. उन्हें लगता है कि उन्हें बैकग्राउंड जानकारी की ज़रूरत नहीं है. मुझे यक़ीन है कि पहले की तरह ही उनके लिए ब्रीफिंग सामग्री तैयार की जाती होगी लेकिन वह उसे पढ़ते नहीं हैं."
बोल्टन ने कहा कि ट्रंप का मानना था कि अगर किसी नेता से निजी संबंध अच्छे हों तो देशों के बीच संबंध भी अच्छे होंगे. पुतिन इस बात को अच्छी तरह जानते हैं.
वह कहते हैं, "पुतिन अपनी केजीबी की ट्रेनिंग का इस्तेमाल करके ट्रंप को प्रभावित करने की कोशिश करेंगे. उन्होंने पहले भी ऐसा किया है और आगे भी करेंगे."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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