सर्जियो गोर भारत में अमेरिका के नए राजदूत होंगे. अमेरिकी सीनेट ने इस पर मुहर लगा दी है.
38 साल के गोर को अमेरिका ने भारत में राजदूत के अलावा दक्षिण और मध्य एशिया के विशेष दूत की भी ज़िम्मेदारी दी है.
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर जब पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने गए थे तो गोर से उनकी मुलाक़ात हुई थी.
टाइम्स ऑफ इंडिया के वॉशिंगटन संवाददाता चिदानंद राजघट्टा ने लिखा है कि गोर का वास्तविक सरनेम गोरोखोवोस्की है और अमेरिका आने से पहले भारत से उनके संबंधों के बारे में बहुत कुछ पता नहीं है.
गोर का जन्म उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में हुआ था. जब गोर 12 साल के थे तो उनके माता-पिता अमेरिका पलायन कर गए थे.
चिदानंद राजघट्टा ने लिखा है, ''गोर के पिता युरी गोरोखोवोस्की एविएशन इंजीनियर बताए जाते हैं और उन्होंने सोवियत की सेना के लिए एयरक्राफ्ट डिज़ाइन किए थे. ख़ासकर आईएल-76 मिडएयर सुपरटैंकर का, जो कि भारतीय वायुसेना का भी हिस्सा है.''
''उनकी माँ इसराइली मूल की बताई जाती हैं. गोर किशोरावस्था से ही कंज़र्वेटिव रिपब्लिकन खेमे में सक्रिय थे. गोर घोर दक्षिणपंथी सांसद स्टीव किंग और माइकल बैचमैन के प्रवक्ता भी रहे थे. ट्रंप के खेमे में गोर 2020 के चुनाव में आए और 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' में बहुत सक्रिय रहे.''
ट्रंप ने जब गोर को भारत के राजदूत के लिए नामित किया था तो अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा था कि गोर अमेरिका के बेहतरीन प्रतिनिधि साबित होंगे.
अमेरिका के वाणिज्य मंत्री होवार्ड लुटनिक ने कहा था कि भारत अब बेहतरीन हाथों में है. हालांकि भारत ने तब कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी और विदेश मंत्री एस जयंशकर से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि मीडिया के ज़रिए उन्हें भी पता चला है.
ट्रंप की रणनीति क्या है?
अगस्त के आख़िरी हफ़्ते में ट्रंप ने व्हाइट हाउस के पर्सनल डायरेक्टर सर्जियो गोर को भारत के राजदूत के लिए नामांकित किया. पहली नज़र में ऐसा लगा कि सर्जियो ट्रंप के वफ़ादार हैं तो उनके ज़रिए भारत को संबंध सुधारने का मौक़ा मिल सकता है. लेकिन कई विशेषज्ञ मान रहे हैं कि जिस तरह से गोर की नियुक्ति हुई है, वह भी भारत को परेशान करने वाला है.
गोर को भारत के अलावा दक्षिण और मध्य एशिया की ज़िम्मेदारी मिली है. जब भारत अमेरिका की नज़र में ख़ुद को पाकिस्तान से बिल्कुल अलग देखना चाहता है, ऐसे वक़्त में गोर को भारत के साथ दक्षिण एशिया की भी ज़िम्मेदारी दे दी है.
जब जयशंकर से गोर की नियुक्ति को लेकर पूछा गया तो उन्होंने कहा था, ''हाँ, मैंने भी इसके बारे में पढ़ा है.''
इससे पता चलता है कि अमेरिकी अधिकारियों ने गोर का नाम सार्वजनिक करने से पहले भारत को सूचित नहीं किया था.
भारत के जाने-माने डिप्लोमैट और पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने भी सर्जियो को नामांकित किए जाने के तरीक़े और उन्हें मिली अतिरिक्त ज़िम्मेदारी पर सवाल उठाए हैं.
से बात करते हुए कहा, ''यह डिप्लोमैटिक प्रैक्टिस का हिस्सा है कि जब आप किसी देश में राजदूत की नियुक्ति करते हैं तो पहले उस नाम का प्रस्ताव गोपनीय तरीक़े से भेजते हैं. इसके बाद वह देश अपनी राय देता है और फिर अप्रूवल होता है. लेकिन यहाँ तो ट्रंप ने एकतरफ़ा घोषणा कर दी.''
गोर को दक्षिण और मध्य एशिया की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी मिलने पर श्याम सरन कहते हैं, ''आप भारत जैसे अहम देश में एक ऐसे राजदूत को भेज रहे हैं, जिसके पास और भी ज़िम्मेदारियां होंगी. ऐसा लग रहा है कि भारत को पार्ट टाइम राजदूत दिया गया है. यह तो बिखरी हुई डिप्लोमेसी होगी कि आप दिल्ली में बैठकर भारत-पाकिस्तान की भी बात करेंगे और भारत-बांग्लादेश की भी. अतीत में ऐसा कभी नहीं हुआ. हम इसका स्वागत तो नहीं कर सकते हैं.''
भारत के लिए उम्मीदलेकिन भारत और अमेरिका संबंधों को फिर से मज़बूत करने के पक्षधर कुछ लोग कहते हैं कि इस समय यह ज़्यादा अहम है कि नई दिल्ली में ऐसा राजदूत हो जिसकी राष्ट्रपति तक सीधी पहुँच हो, बजाय इसके कि उसकी योग्यता की चिंता की जाए.
आस्था जडेजा मोटवानी जो एक सिलिकॉन वैली की वेंचर कैपिटलिस्ट हैं और ख़ुद को अमेरिका-इंडिया ऑप्टिमिस्ट बताती हैं. मोटवानी ने गोर को नामित किए जाने पर लिखा था, ''हम पिछले कुछ महीनों में मुश्किल से संवाद कर पाए हैं लेकिन जैसे ही सर्जियो पद संभालेंगे, हम घंटों में संवाद कर पाएंगे.''
ट्रंप के पूर्व सलाहकार स्टीव बैनन भी गोर के नामांकन से काफ़ी खुश थे.
उन्होंने पॉलिटिको से कहा था, "मुझे लगता है कि सर्जियो उन चंद लोगों में शामिल हैं, जो राष्ट्रपति तक किसी भी समय, दिन हो या रात, विशेष पहुँच रखते हैं. क्या उन्हें भारतीय नीति का गहरा ज्ञान है? नहीं है, लेकिन यह आदमी तेज़ी से सीखता है. उनके पास न सिर्फ़ राष्ट्रपति तक पहुँच है बल्कि उन पर विशेष विश्वास भी है.''
हाल के महीनों में ट्रंप का भारत के प्रति जो रुख़ रहा है, उसमें गोर की नियुक्ति को लेकर बहुत कुछ भरोसे के साथ कहना आसान नहीं है.
जेम्स क्रैबट्री अमेरिकी पत्रिका फॉरन पॉलिसी के कॉलमनिस्ट हैं.
जेम्स ने 27 अगस्त को फ़ॉरन पॉलिसी में लिखा था, ''भारत को लगता था कि वह ट्रंप को भी मैनेज कर लेगा. लेकिन मोदी की टीम को देर से ही सही, उसे ट्रंप के मामले में अपने ग़लत आकलन का अहसास हो गया है.''
''भारत को अमेरिका के क़रीब रखना मोदी के लिए भारत के भीतर राजनीतिक रूप से जोखिम भरा हो सकता है. भारत की विदेश नीति पारंपरिक रूप से गुटनिरपेक्ष रही है. ट्रंप ने जिस तरीक़े से संबंधों को एक झटके में ख़त्म किया, वह भारत के भीतर राजनीतिक रूप से हंगामा खड़ा करने वाला रहा है.''
ट्रंप ने तेज़ वृद्धि दर वाली भारत की अर्थव्यवस्था की तुलना रूस की अर्थव्यवस्था से करते हुए उसे मृत बताया. अमेरिका के वित्त मंत्री ने भारत को मुनाफ़ाखोर कहा और ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो ने यूक्रेन वॉर को मोदी वॉर कहा.
राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन में हुई शंघाई कोऑपरेशन की बैठक के बाद ट्रुथ सोशल पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर पोस्ट कर लिखा, ''ऐसा लग रहा है कि हमने भारत और रूस को संदिग्ध चीन के हाथों खो दिया है. उम्मीद करता हूं कि इनकी सोहबत सुखद और लंबे समय के लिए होगी.''
डोनाल्ड ट्रंप जब पिछले साल नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव जीते तो बहुसंख्यक भारतीय ख़ुश थे. कुछ दक्षिणपंथी संगठन तो ट्रंप के लिए पूजा और हवन तक कर रहे थे. लेकिन कुछ महीने बाद ही ट्रंप ने जिस तरह से भारत को हैंडल किया, उससे ट्रंप के प्रशंसक निराश हैं.
इस साल जनवरी में यूरोपियन काउंसिल फॉर फॉरन रिलेशन्स ने एक सर्वे कराया था. इस सर्वे में 84 प्रतिशत भारतीयों ने बताया था कि ट्रंप की वापसी उनके देश के हित में होगी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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