दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता दिख रहा है. प्रदूषण से बचने के लिए कई लोग घर से बाहर निकलते वक़्त मास्क पहन रहे हैं.
हर साल ठंड के मौसम के आग़ाज़ के साथ ही दिल्ली में एयर क्वालिटी तेजी से बिगड़ती है.
इस मौसम में आमतौर पर दिल्ली और आसपास के इलाक़ों का एक्यूआई ख़राब से गंभीर श्रेणी में रहता है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) के आंकड़ों के मुताबिक़, बीते हफ़्ते दिल्ली के कई इलाक़ों का एक्यूआई 350 और कुछ जगहों पर 400 के पार भी पहुंच गया.
दिल्ली में रहने वाले लोगों को इस मौसम में स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
इस मौसम में डॉक्टर अक्सर लोगों को सावधानी बरतने और बचकर रहने की सलाह देते हैं.
पीएसआरआई के इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मनरी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन के अध्यक्ष डॉक्टर गोपी चंद खिलनानी कहते हैं, "प्रदूषण के प्रभाव को समझने के लिए हमें इसके हिस्सों को समझना पड़ेगा. इसमें मुख्य तौर पर पीएम 10, पीएम 2.5 और अल्ट्रा फ़ाइन पार्टिकुलेट मैटर शामिल होते हैं, जो 0.1 माइक्रोन से भी छोटे होते हैं."
"कुछ गैसें भी इनमें शामिल हैं, जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड, जो लकड़ी या कोयले के जलने से बनती हैं. पेट्रोल से नाइट्रिक ऑक्साइड निकलती है."
उनका कहना है कि कार्बन मोनोऑक्साइड फेफड़ों तक सीमित नहीं रहती. नैनो पार्टिकल, जो 0.1 माइक्रोन से भी छोटे होते हैं, फेफड़ों को पार करते हुए एल्वियोलस (लंग्स के एयर बैग) के ज़रिये शरीर के कई हिस्सों में जाकर नुक़सान पहुंचाते हैं.
शरीर के किन हिस्सों को नुक़सान
Getty Images वायु प्रदूषण से लोगों के फेफड़ों पर सबसे ज़्यादा असर होता है. साथ ही शरीर के कुछ दूसरे हिस्सों पर इसका असर होता है. वायु प्रदूषण फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों को भी नुक़सान पहुंचाता है.
डॉक्टर खिलनानी साल 1997 में दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में हुई एक स्टडी का हवाला देते हुए कहते हैं, "वायु प्रदूषण के कारण हार्ट अटैक, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के केस 21 से 24 फ़ीसदी तक बढ़े थे. मैं भी इस स्टडी का हिस्सा रहा हूं."
उन्होंने कहा, "प्रदूषण का असर हमारे कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम पर भी होता है. जहां वायु प्रदूषण ज़्यादा होता है, वहां रहने वाले लोगों में हार्ट अटैक के मामले बढ़ जाते हैं. लोगों का ब्लड प्रेशर ज़्यादा रहता है. मस्तिष्क से जुड़ी समस्याएं जैसे पैरालिसिस, स्ट्रोक और डिमेंशिया का भी ख़तरा बना रहता है."
डॉक्टर खिलनानी के मुताबिक़ भारत डायबिटीज़ की राजधानी बनता जा रहा है और इसमें वायु प्रदूषण का भी बड़ा योगदान है.
वो कहते हैं, "पूरी दुनिया में कैंसर से मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है. पहले लंग कैंसर का सबसे प्रमुख कारण स्मोकिंग होता था, लेकिन अब भारत में 40 फ़ीसदी फेफड़ों का कैंसर प्रदूषण के कारण हो रहा है. यहाँ तक कि ब्रेस्ट कैंसर और यूटेरस कैंसर भी प्रदूषण के कारण ज़्यादा हो सकते हैं."
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इसका असर बच्चों, बुज़ुर्गों, गर्भवती महिलाओं और पहले से बीमार लोगों पर सबसे ज़्यादा होता है.
हालांकि इन दिनों दिल्ली में प्रदूषण का असर इतना ज़्यादा होता है कि यह स्वस्थ इंसान को भी गंभीर बीमारियाँ दे सकता है.
दिल्ली के गंगाराम हॉस्पिटल के वरिष्ठ डॉक्टर मोहसिन वली कहते हैं, "दिल्ली-एनसीआर में इन दिनों जिस तरह का प्रदूषण होता है, उससे लोगों को भूलने और भ्रम जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं. पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं होने की वजह से लोग थकान भी महसूस कर सकते हैं."
उनका कहना है, "इससे महिलाओं में पीसीओडी हो सकती है, जो पीरियड्स से जुड़ी समस्या है. यह प्रदूषण उनकी फर्टिलिटी को भी प्रभावित कर सकता है और पुरुषों में भी संतान पैदा करने की क्षमता पर असर डाल सकता है."
यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो की एक स्टडी से यह बात सामने आई कि पीएम 2.5 लेवल बढ़ने से बच्चों की सीखने की क्षमता कम हो जाती है.
शिकागो यूनिवर्सिटी की द एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (ईपीआईसी) की इस स्टडी के मुताबिक़, वायु प्रदूषण का असर पुरुषों और महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर भी पड़ता है.
इससे पुरुषों की स्पर्म क्वालिटी ख़राब हो जाती है और इनफ़र्टिलिटी रेट बढ़ जाता है.
महिलाओं की प्रेग्नेंसी पर भी इसका प्रभाव पड़ता है. महिलाओं को इंट्रा यूट्रिन ग्रोथ रिटार्डेशन हो सकता है, यानी बच्चे का गर्भ के अंदर विकास प्रभावित होता है.
प्रीमेच्योर डिलीवरी भी इसका एक असर हो सकता है. बच्चों में कॉन्जनिटल एब्नॉर्मलिटीज़ होने के चांस बढ़ जाते हैं.
ईपीआईसी के मुताबिक़, बुज़ुर्गों पर प्रदूषण का सबसे ज़्यादा असर पड़ता है. उनमें डिमेंशिया का ख़तरा बढ़ जाता है. जिनकी इम्युनिटी कमजोर है, या जिनका कैंसर का इलाज चल रहा हो, या हार्ट से जुड़ी कोई समस्या हो, उनके लिए प्रदूषण जानलेवा साबित हो सकता है.
डॉक्टर खिलनानी अगस्त 2023 में ईपीआईसी के जारी किए गए आंकड़ों का ज़िक्र करते हैं, जिनके मुताबिक़ प्रदूषण की वजह से भारतीयों की औसत आयु 5.3 वर्ष और दिल्लीवासियों की औसत आयु 11.9 वर्ष कम हो रही है.
ये आंकड़े एयर क्वालिटी लाइफ़ इंडेक्स (एक्यूएलआई) का हिस्सा हैं. एक्यूएलआई बताता है कि धूल-धुएं (पार्टिकुलेट पॉल्यूशन) से इंसान की ज़िंदगी पर कितना असर पड़ता है.
वायु प्रदूषण का मानसिक स्वास्थ्य पर कितना असर पड़ता है?
Getty Images वायु प्रदूषण से डिप्रेशन भी हो सकता है डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर लोकेश सिंह शेखावत बताते हैं, "हमारे शरीर में इन्फ़्लेमेटरी मार्कर होते हैं, जो बीमारी या प्रदूषण से बढ़ते हैं. ये मार्कर और मेटाबॉलिज़्म के वेस्ट प्रोडक्ट्स (ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस) न्यूरॉन्स को लॉन्ग-टर्म नुकसान पहुंचाते हैं."
उनके मुताबिक़, "प्रदूषण से ये ब्रेन में बढ़ते हैं, जिससे एंग्ज़ायटी, डिप्रेशन, ओसीडी और स्किज़ोफ़्रेनिया जैसी साइकियाट्रिक समस्याएं बढ़ती हैं. साथ ही, बड़े न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर जैसे डिमेंशिया और पार्किंसन भी प्रभावित होते हैं. ये हार्ट, किडनी और लिवर को भी नुकसान पहुंचाते हैं."
डॉक्टर लोकेश सिंह शेखावत के मुताबिक़, प्रदूषण महिलाओं में मानसिक असंतुलन बढ़ाता है. इससे छोटे बच्चों का न्यूरोडेवलपमेंट बाधित होता है, जिससे आगे चलकर ऑटिज़्म और एडीएचडी जैसे डिस्ऑर्डर का ख़तरा बढ़ता है.
इसके साथ ही बुज़ुर्गों में डिमेंशिया और पार्किंसन का ख़तरा बढ़ जाता है.
25-40 साल के लोगों में यह मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, कॉग्निटिव फंक्शन की कमी और डिसीजन मेकिंग पर असर डाल सकता है.
डॉक्टर शेखावत मानते हैं कि प्रदूषण मूड और इमोशन को भी प्रभावित करता है. जल्दी-जल्दी किसी बात पर चिढ़ना, मूड स्विंग और गुस्सा आना भी इसका हिस्सा है.
वो वायु प्रदूषण को एक बहुत बड़ी आपदा मानते हैं. आने वाले 10-15 साल में जो आबादी वायु प्रदूषण में रह रही है, उसकी प्रोडक्टिविटी के साथ-साथ कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट भी बढ़ सकता है.
उनके मुताबिक़, आने वाले समय में जो बच्चे पैदा होंगे, उनमें मेंटल हेल्थ या न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर की समस्या आ सकती है, जिसे संभालना प्रदूषण को संभालने से ज़्यादा मुश्किल होगा.
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Getty Images एयर क्वालिटी ख़राब होने पर आप घर के अंदर एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल कर सकते हैं. डॉक्टरों के मुताबिक़, इस तरह के प्रदूषण से बचने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि इससे दूरी बनाए रखें.
डॉक्टर वली कहते हैं, "यह फेफड़ों को प्रभावित करता है और खांसी, दमा और सांस फूलने की बीमारी को बढ़ा सकता है. यह दिल के मरीजों के लिए काफ़ी खतरनाक हो सकता है. इसलिए इससे बचने का उपाय यही है कि आप इस माहौल से दूर रहें."
उनके मुताबिक़, "दिल्ली और आसपास के इलाक़ों में सर्दियों में हवा इसी तरह प्रदूषित होती है, चाहे दिन हो या रात, सुबह हो या शाम. अगर आप दिल्ली नहीं छोड़ सकते, तो बहुत ज़रूरी होने पर ही घर से निकलें. पार्क जाना और एक्सरसाइज़ करना छोड़ दें. मास्क का इस्तेमाल ज़रूर करें."
डॉक्टर खिलनानी भी कुछ ऐसी ही सलाह देते हैं, "सुबह जब स्मॉग होता है, तो एक्सरसाइज या वॉक न करें, क्योंकि उस समय वायु प्रदूषण सतह पर रहता है. जब धूप निकले, तब बुजुर्ग वॉक कर सकते हैं, क्योंकि उनके लिए अपनी सेहत का ध्यान रखना ज़रूरी है."
इसके अलावा:
- बिज़ी मार्केट में जाने से परहेज़ करें.
- जब प्रदूषण का स्तर खतरनाक श्रेणी में हो, तो N95 या N99 मास्क का ही इस्तेमाल करें.
- अगर खांसी बार-बार हो, तो एंटीबायोटिक दवा न खाएं.
- इम्युनिटी बढ़ाने के लिए पौष्टिक आहार लें.
- ऐसे मौसम में एयर प्यूरीफ़ायर का इस्तेमाल करें. हालांकि यह कोई स्थायी उपाय नहीं है, लेकिन इसे एसी की तरह इस्तेमाल न करें. इसे ऑन ही रखें.
- सोते समय एयर प्यूरीफ़ायर की दिशा अपनी तरफ रखें.
ऐसे मौसम में आप एयर प्यूरीफायर भी इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि एयर प्यूरीफ़ायर कोई स्थाई इलाज नहीं है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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