-पुश्तैनी कार्य से घर का खर्च चलाना दुभर, नई पीढ़ियों ने बनाई दूरी
पूर्वी चंपारण, 18 अक्टूबर (हि.स.)।दीपावली पर दूसरे के घरों को अपने दीयो से रोशन करने वाले कुम्हारों की खुद की जिंदगी अंधेरे में गुजर रही है। हालत यह हो गई है कि नई पीढियां अब पुश्तैनी काम से दूरी बनाने लगे है। घर का खर्च चलाने के लिए युवा शहरों में जाकर मेहनत मजदूरी करने को मजबूर हैं।
उनका कहना है कि सरकार भले ही कुम्हारों के रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है, लेकिन यह योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई है। हमें कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस महंगाई में जहां ईंधन का मूल्य आसमान छू रहा है। वहीं, मिट्टी से बनी बर्तनों के दाम पिछले पांच सालों से समान है। महंगा करने पर बाजारों में इसकी बिक्री कम हो जाती है। मजबूरन सस्ते दामों में बेचने पड़ रहा है।
चाक पर मिट्टी के दीयो को आकार देते बुजुर्ग शंकर पंडित बताते है,कि उम्र के इस पड़ाव पर कोई अन्य कार्य नहीं कर सकता,इसलिए मजबूरन यह काम करना पड़ता है।थके और बुझे स्वर में बताते है,कि महंगाई बढने से लोग मिट्टी की दीपक उपयोग करने की जगह चाईनीज लाइटों का उपयोग कर रहे हैं। दीपक में उपयोग होने वाला तेल और महंगा पड़ती है।
महंगाई से राहत के चक्कर में बाजार बिक रही चाईनीज लाइटों का लोग उपयोग कर रहे हैं।जिससे मिट्टी का दीपक बनना कम कर दिया है।अब मिट्टी के कुछ बड़े बर्तन बना कर गुजर कर रहे हैं। बंजरिया प्रखंड के चैलाहां निवासी कुम्हार बुधन पंडित ने कहा कि पुश्तैनी कार्य के नाते मैं जब-तक जीवित हूं कर रहा हूं।
बच्चे अब इस कार्य में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। इस काम से घर का खर्च चलाना बड़ी मुश्किल है। बच्चे मजबूरन बड़े शहरों की पलायन कर रहे है,या नौकरी रोजगार तलाश रहे है।इस काम में कोई ज्यादा लाभ नही रहा।चैलाहां के ही चुल्हाई पंडित ने कहा इस महंगाई में ईंधन पर बहुत खर्च हो जाता है।
महंगे दाम पर दूर दराज से मिट्टी मंगाकर किसी तरह मिट्टी के दीपक और बर्तन बनाते है,लेकिन लागत के सापेक्ष मजदूरी नहीं निकल पाती है। पिछले पांच वर्षों से मिट्टी का दीये एक ही रेट में बाजारों में बिक रहा है। बताते है,कि हर साल जब दीपावली आता है,तो सरकार कुम्हारों के लिए लंबे चौड़े बयान बाजी करती है, सरकार ने भी कई योजनाएं चलाई है,लेकिन सच तो यह है, सरकार का किसी भी योजना का कोई लाभ अबतक नहीं मिला नही है।
हिन्दुस्थान समाचार / आनंद कुमार
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