Apple कंपनी भारत सरकार से अपनी इनकम टैक्स लॉ में बदलाव की मांग कर रहा है जिससे वो अपने महंगे iPhone बनाने वाले मशीनरी के मालिक होने पर एक्स्ट्रा टैक्स से बच सके। कंपनी की भारत में उपस्थिति तेजी से बढ़ रही है और उसने Foxconn और Tata जैसे कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरर्स के जरिए अरबों डॉलर का इन्वेस्ट किया है। चीन में Apple के लिए यह समस्या नहीं है पर भारत का पुराना इनकम टैक्स एक्ट 1961 इसे बिज़नेस कनेक्शन मानता है जिससे भारी टैक्स का काफी खतरा भी है। Apple की यह डिमांड भारत के स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग और इन्वेस्टमेंट की जरूरत को समझते हुए यह बहुत महत्वपूर्ण समय है।
Apple का भारत में तेजी से बढ़ता इन्वेस्टमेंट
Apple ने चीन से अपनी मैन्युफैक्चरिंग ज़्यादातर भारत में शिफ्ट करना शुरू कर दिया है, जहाँ उसकी मार्केट शेयर पिछले कुछ सालों में दोगुनी हो चुकी है। Foxconn और Tata ने पांच प्लांट्स खोलकर अरबों डॉलर निवेश किए हैं। इन प्लांट्स में महंगी मशीनरी लगाई जाती है, जो Apple खुद खरीदकर कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरर्स को देता है। भारत के इनकम टैक्स एक्ट के तहत अगर Apple इन मशीनों का मालिक माना गया, तो उसे भारतीय सरकार को भारी टैक्स देना पड़ेगा। चीन में ऐसा नहीं होता क्योंकि वहाँ Apple को मशीनरी ओनरशिप पर टैक्स नहीं देना पड़ता। इस वजह से Apple सरकार से इस पुराने कानून में बदलाव की मांग कर रहा है।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग प्रधानमंत्री मोदी की प्राथमिकता है और भारत एक बड़ा मोबाइल मार्केट होने के कारण इन्वेस्टर्स के लिए आकर्षक है। हालांकि भारत सरकार इस बदलाव को लेकर सावधान है क्योंकि टैक्स कानून में कोई भी बदलाव देश की टैक्स की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि Apple के निवेश महत्वपूर्ण हैं लेकिन टैक्स नियमों में बदलाव टफ कॉल है। सरकार इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा देना चाहती है लेकिन साथ ही अपना टैक्स अधिकार भी बनाए रखना चाहती है। इसलिए इस मुद्दे पर गंभीर विचार-विमर्श किया जा रहा है।
कानूनी डिफिकल्टीज़इनकम टैक्स एक्ट 1961 के तहत अगर Apple की मशीनरी भारत में मानी गई बिज़नेस कनेक्शन के रूप में देखी जाती है तो इसका मतलब Apple के ग्लोबल रेवेन्यू पर भारत में टैक्स लगाया जा सकता है। 2017 में भारत की सुप्रीम कोर्ट ने भी UK के Formula One को इसी आधार पर टैक्स देने का आदेश दिया था। Apple की इस स्थिति में अरबों रुपये का अतिरिक्त टैक्स लग सकता है। दूसरी ओर, Samsung को यह समस्या नहीं है क्योंकि वह अपने सभी फ़ोन भारत में खुद के फैक्ट्री में बनाता है। इंडिया सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA), जो Apple का समर्थन करता है उन्होंने सरकार को बताया है कि कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरर्स के लिए इतनी महंगी मशीनों में निवेश करना मुश्किल है और टैक्स नियमों में बदलाव से निवेश बढ़ेगा।
Apple का भारत में तेजी से बढ़ता इन्वेस्टमेंट
Apple ने चीन से अपनी मैन्युफैक्चरिंग ज़्यादातर भारत में शिफ्ट करना शुरू कर दिया है, जहाँ उसकी मार्केट शेयर पिछले कुछ सालों में दोगुनी हो चुकी है। Foxconn और Tata ने पांच प्लांट्स खोलकर अरबों डॉलर निवेश किए हैं। इन प्लांट्स में महंगी मशीनरी लगाई जाती है, जो Apple खुद खरीदकर कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरर्स को देता है। भारत के इनकम टैक्स एक्ट के तहत अगर Apple इन मशीनों का मालिक माना गया, तो उसे भारतीय सरकार को भारी टैक्स देना पड़ेगा। चीन में ऐसा नहीं होता क्योंकि वहाँ Apple को मशीनरी ओनरशिप पर टैक्स नहीं देना पड़ता। इस वजह से Apple सरकार से इस पुराने कानून में बदलाव की मांग कर रहा है।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग प्रधानमंत्री मोदी की प्राथमिकता है और भारत एक बड़ा मोबाइल मार्केट होने के कारण इन्वेस्टर्स के लिए आकर्षक है। हालांकि भारत सरकार इस बदलाव को लेकर सावधान है क्योंकि टैक्स कानून में कोई भी बदलाव देश की टैक्स की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि Apple के निवेश महत्वपूर्ण हैं लेकिन टैक्स नियमों में बदलाव टफ कॉल है। सरकार इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा देना चाहती है लेकिन साथ ही अपना टैक्स अधिकार भी बनाए रखना चाहती है। इसलिए इस मुद्दे पर गंभीर विचार-विमर्श किया जा रहा है।
कानूनी डिफिकल्टीज़इनकम टैक्स एक्ट 1961 के तहत अगर Apple की मशीनरी भारत में मानी गई बिज़नेस कनेक्शन के रूप में देखी जाती है तो इसका मतलब Apple के ग्लोबल रेवेन्यू पर भारत में टैक्स लगाया जा सकता है। 2017 में भारत की सुप्रीम कोर्ट ने भी UK के Formula One को इसी आधार पर टैक्स देने का आदेश दिया था। Apple की इस स्थिति में अरबों रुपये का अतिरिक्त टैक्स लग सकता है। दूसरी ओर, Samsung को यह समस्या नहीं है क्योंकि वह अपने सभी फ़ोन भारत में खुद के फैक्ट्री में बनाता है। इंडिया सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA), जो Apple का समर्थन करता है उन्होंने सरकार को बताया है कि कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरर्स के लिए इतनी महंगी मशीनों में निवेश करना मुश्किल है और टैक्स नियमों में बदलाव से निवेश बढ़ेगा।
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