Himachali Khabar
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
स्वाभाविक रूप से स्ट्रीट डॉग किसी से दुश्मनी नहीं करते, वो केवल वहां रहने वाले लोगों को बाहरी आगंतुकों से सचेत करने का कार्य बखूबी करते है। जब स्ट्रीट डॉग या गलियों में रहने वाले श्वान या कुत्तों की बात करते है तो मुझे याद आता है कि वो बिना कुछ लिए अपनी गली या अपने क्षेत्र की रक्षा करते है, उनकी कोई डिमांड नहीं है, वो कुछ मांगते नहीं है, फिर भी जहां रहते है वहां का भरपूर ख्याल करते है। स्ट्रीट डॉग एक ऐसा प्राणी है जो अपने ही क्षेत्र में रहते है, उसको छोड़कर कहीं नहीं जाते, चाहे आप उन्हें कितना भी दुत्कारे, वो अपनी ड्यूटी निभाते है। कुछ लोग इन्हें स्ट्रे डॉग नाम देते है जो बिल्कुल गलत है क्योंकि श्वान इधर उधर भटकने वाला जीव नहीं है, वो अपने ही निर्धारित क्षेत्र में रहते है। हर गली में कोई न कोई श्वान मिल ही जाता है। जो बिना किसी के कहे ही वहां की सेवा करता है, रक्षा करता है, किसी नए व्यक्ति के आगमन, किसी नए जानवर के आने पर, किसी भी प्रकार की समस्या में वो अपने होने का एहसास अवश्य करता है। कई बार कुछ लोग उनके भौंकने तथा करहाने पर उन्हें मारते पीटते है या वहां से भगाने का कार्य करते है। मैं यहां ऐसे लोगों से दो प्रश्न करना चाहता हूँ जिनमें कोई संवेदना ना होने के कारण उन्हें मारते पीटते है, पहला क्या उन्होंने कभी विचार किया है कि उनके भोजन की व्यवस्था कौन कार्य है, कौन उनकी भूख के निवारण का कारण बनते है? दूसरा प्रश्न ये कि क्या आपने कभी खुद के या खुद के परिवार के सर्दी गर्मी में रहने के इंतजाम के सिवाय, किसी पशु पक्षी, या जानवर अर्थात कुत्ता बिल्ली के रहने के बारे में सोचा है? अगर नहीं तो विचार करिए कि हम कितने गए गुजरे है कि जो श्वान गली में आपके घर की अनजाने में ही देखभाल के लिए तत्पर रहते है, उनको फ्री में भी रखने में हम अपनी खीज बहुत बार उनको मार पीट कर निकालते है। भारतीय संस्कृति में तो एक रोटी कुत्ते के लिए निकालने की परम्परा सदा से रही है तो फिर आज हम अपने घरों में क्यों गिन गिन कर रोटियां बनाने लगे है? क्यों हमने गाय की रोटी तथा कुत्ते की रोटी निकालनी छोड़ दी है? मैने अपने बुजुर्गो को बहुत नजदीक से देखा है कि जब वो भोजन करने के लिए बैठते थे तो पहला टुकड़ा कुत्ते बिल्ली को डालते थे, रोटी के छोटे छोटे टुकड़े करके चिड़ियों या चींटियों को डालते थे, लेकिन वर्तमान बहुत स्वार्थी हो गया है, डाइनिंग टेबल पर बैठ कर भोजन खाने वाले लोग क्या जाने कुत्ते बिल्ली के लिए रोटी निकालना। मुझे आश्चर्य होता है जब लोग भोजन बनाने से पहले परिवार में हर सदस्य से पूछा जाता है कि कितनी रोटी खाओगे? हम कितने स्वार्थी हो गए है? आप किसी दिन शांत बैठकर विचार करना कि आपने कब किसी गाय को, कुत्ते को, बिल्ली को, किसी पक्षी को रोटी का टुकड़ा या दाना डाला है तो आपको अपनी हृदय की विशालता के दर्शन हो जाएंगे, कि आप कितने संवेदनशील है। आप किसी एक व्यक्ति को चौकीदार के लिए भी रखते है तो उसे भी 15 से 20 हजार रुपए महीने का देना पड़ता है और वो भी केवल आठ घंटे के लिए। इसके विपरीत हम तो गली में बैठे किसी कुत्ते को देखते भी नहीं है, उसको दिन में एक रोटी भी देने को तैयार नहीं है। हां, किसी ने कोई टोटके के रूप में बता दिया कि किसी काले कुत्ते को एक माह तक घी चुपड़ी हुई रोटी खिलाना तो फिर हम अपने स्वार्थ के लिए उन्हें ढूंढते फिरते है। श्राद्ध में भी कुत्ते को, कौवे को, तथा गाय को ढूंढते फिरते है। हममें से कितने ऐसे लोग है जो बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी टोने टोटके के एक मानव होने के नाते हर जीव के लिए उनके खाने पीने की व्यवस्था करते है या सर्दी गर्मी से बचाव के लिए उनके रहने की व्यवस्था करते है। जीवन सांझा है, जीवन सबके साथ है, जीवन सहअस्तित्व का नाम है, जीवन एक दूसरे के साथ जुड़ा हुआ है। जीवों से प्रेम करना सीखो, तभी जीवन में शांति तथा प्रसन्नता आयेगी। मैने कई बार देखा है कि कोई कुत्ता या छोटा पिल्ला किसी की ग्रीन बेल्ट में ठंडक वाली जगह पर बैठ जाए तो लोग उसे लठ मार कर भगाते है। अरे क्या फर्क पड़ जाएगा अगर वो गर्मी के मौसम में किसी ठंड के स्थान पर बैठ जाएंगे। श्वान तो मनुष्य के लिए बेहद लाभदायक होते है। कुत्ते की सुनने की क्षमता इतनी तेज होती है कि धरती के भीतर या बाहर कुछ भी अजीब घटना होने से पहले ही वो भौंकने लगते है और आसपास के लोगों को सचेत कर देते है। आपने देखा होगा कि जब भी भूकंप आता है या आने को होता है तो कुत्ते जोर जोर से भौंकने लगते है, क्या ऐसा कोई और कर सकते है? नहीं कर सकते है। इस समाज में कुछ संवेदना से भरे मानव है जो किसी एक स्ट्रीट डॉग के पूरे दिन के लिए भोजन की व्यवस्था करते है, अरे हम तो कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर भी बड़े दानी कहलाने की कोशिश करते है। कितने संयमी जीव है श्वान, जो अपनी गली को छोड़कर कहीं नहीं जाते है चाहे उन्हें भोजन कम ही मिलता हो। उनसे वफादार जीव आपको मिलेगा नहीं। कितनी विडंबना है कि हम घटिया से घटिया व्यक्ति की बराबरी कुत्ते से करते है, कितना अन्याय है ये कुत्तों के साथ, जिसने कभी घटिया कार्य नहीं किया। वो तो बिना किसी मालिक के भी गली में सभी को मालिक होने का आभास कराते है परंतु फिर भी ना जाने लोग उनके लिए अपने भोजन के साथ एक रोटी भी निकालने को तैयार नहीं है। बहुत कम लोग है जो इन स्ट्रीट डॉग के लिए अपना कुछ समय देते है, उनके दुख दर्द में सहभागी बनते है, उनके दुख दर्द को बांटते। हां है कुछ महानुभाव जो स्ट्रीट डॉग के लिए बहुत कुछ करते है, ना केवल उनके भोजन पानी, रहने के इंतजाम की व्यवस्था करते है बल्कि उनकी दुख तकलीफ में दवाई आदि की भी व्यवस्था करते है। ऐसे कई संवेदना वाले महानुभावों को मै जनता हूँ जो इनकी देखभाल करते है, उन्ही में से एक है डॉक्टर किरण सिंह जी, जो चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के इंदिरा चक्रवर्ती सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है, जो बड़ी संख्या में स्ट्रीट डॉग्स के लिए ना केवल भोजन की व्यवस्था करती है बल्कि उनके रहने का इंतजाम भी करती है। डॉक्टर किरण सिंह की सहृदयता के कारण ही कितने ही स्ट्रीट डॉग्स को खाने पीने के लिए रोटी पानी मिलता है तथा उनसे उन्हें दुलार भी मिलता है। हमारे लिए ऐसे महान लोग पथ प्रदर्शक के रूप में है, हमे भी उनके साथ सहयोगी बनना चाहिए। हम सभी को ऐसे जीवंत महानुभावों की प्रशंसा तथा सराहना करनी चाहिए। हम सभी को अपने व्यस्त समय में से कुछ पल अन्य जीवों के लिए भी निकालने चाहिए ताकि जीवन की चेन टूटे ना और इकोलॉजिकल संतुलन बना रहे। ये पृथ्वी केवल इंसानों के लिए ही नहीं है, ये तो सबकी सांझी है, ये तो सभी के जीवन की एक चेन है जो एक दूसरे के जीवन को प्रभावित करती है, जो एक दूसरे पर निर्भर है। सभी इन जीवों के लिए भी भोजन पानी की व्यवस्था करनी चाहिए। जब हम वसुधैव कुटुंबकम् की बात करते है तो ये श्वान बिल्ली पक्षी भी हमारे कुटुंब के एक सदस्य के रूप में समझे जाने चाहिए।
जय हिंद, वंदे मातरम
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