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चीन के टेंगर रेगिस्तान में हरित करिश्मे की कहानी

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बीजिंग, 12 मई . दक्षिण पश्चिमी चीन के कानशु प्रांत के कुलांग जिले के उत्तर में चीन का चौथा सबसे बड़ा रेगिस्तान टेंगर रेगिस्तान है. 40 साल पहले टेंगर रेगिस्तान हर साल दक्षिण में 7.5 मीटर की गति से बढ़ता था, जिससे पड़ोसी गांवों को बड़ा नुकसान पहुंचा.

पापुशा नामक जगह में सबसे तेज हवा चलती है, इसलिए वह रेगिस्तान से सबसे ज्यादा प्रभावित था और बंजर दिखाई देता था. वर्ष 1981 में 50 वर्ष से अधिक आयु वाले छह स्थानीय किसानों ने पापुशा सार्वजनिक वन फार्म स्थापित किया और 5 हजार हेक्टेयर तक बढ़ते मरुस्थल से निपटने का अभियान शुरू किया.

शुरू में उनके पास सिर्फ एक खच्चर, एक लकड़ी वाली गाड़ी, एक बड़ी टोकरी और कई बेलचे थे. 6 किसानों के परिवारों के 40 से अधिक सदस्य सभी वृक्षारोपण में उतरे. पौधों की सुरक्षा के लिए 6 बूढ़े लोग रेगिस्तान में ही रहते थे. पर्यवेक्षण से उन्होंने पाया कि जहां घास होती है, वहां पौधा जीवित रह सकता है. इसलिए वे पहले घास से बहती रेत को स्थिर करते थे और फिर पौधा लगाते थे. इस तरीके से पौधे के जीवित रहने की दर 30 प्रतिशत से बढ़कर 76 प्रतिशत हो गई.

पिछली सदी के नब्बे वाले दशक में 6 किसानों का देहांत हो गया. उनके बेटे व बेटियां रेगिस्तान से संघर्ष करने वाली दूसरी पीढ़ी वाले लोग बन गए. बड़ी मशक्कत के बाद वर्ष 2003 में 5 हजार हेक्टेयर मरुस्थल के निपटारे का कार्य संपन्न हो गया. वे फिर हेइकांगशा, तात्सोशा आदि क्षेत्रों में वृक्षारोपण करने लगे. 16 साल की मेहनत से उन्होंने 4 हजार हेक्टेयर तक बढ़ते मरुस्थल को कैद कर दिया.

वर्ष 2016 के बाद तीसरी पीढ़ी वाले लोगों ने पापुशा वन फार्म में प्रवेश किया. इस टीम की औसत आयु 35 वर्ष की है, जिसमें 12 विद्यार्थी भी हैं. वे पूर्वजों की भावना संरक्षित कर वैज्ञानिक रूप से रेगिस्तान से निपटने की कोशिश कर रहे हैं. वे बड़े इंजीनियरिंग साजो-सामान का उपयोग करते हैं.

उन्होंने 800 से अधिक पारिस्थितिकी कैश वन स्थापित किए और आसपास के किसानों को स्थान विशेष व्यवसायों के विकास में मदद दी. अब वहां स्थित दस से अधिक गांवों की विभिन्न जातियों के लोग एक साथ पारिस्थितिकी का लाभांश शेयर करते हैं. चीन सरकार ने उनके असाधारण योगदान को भी सम्मानित किया.

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

एबीएम/

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