नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर किसी हिंदू पुरुष की मृत्यु 1956 से पहले हुई है और उसके जीवित बेटे हैं, तो उसकी बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा। यह फैसला मिताक्षरा हिंदू कानून के तहत सुनाया गया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी स्थिति में बेटी का अधिकार तभी बनता है जब कोई पुरुष वारिस न हो।
यह मामला संपत्ति के बंटवारे से जुड़ा था, जहां एक बेटी ने अपने पिता की जमीन में हिस्सा मांगा था, लेकिन कोर्ट ने मिताक्षरा कानून के पुराने नियमों का हवाला देते हुए उसके दावे को खारिज कर दिया। बता दें कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के बाद, बेटियों को बेटों के समान पैतृक संपत्ति पर अधिकार प्राप्त हुआ है और वे भी बंटवारे की मांग कर सकती हैं।
मिताक्षरा कानून क्या है?मिताक्षरा हिंदू कानून की एक पारंपरिक व्यवस्था है। इसमें संपत्ति का बंटवारा और उत्तराधिकार पूरी तरह से पुरुषों की वंशावली पर आधारित था। चाहे वह पैतृक संपत्ति हो या स्व-अर्जित, वह पुरुषों के जरिए ही आगे बढ़ती थी। बेटी को संपत्ति में हिस्सा तभी मिलता था, जब कोई पुरुष वारिस न हो। कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात को दोहराया कि मिताक्षरा कानून के तहत, पिता की स्व-अर्जित संपत्ति भी केवल उसके पुरुष बच्चों को ही मिलती थी। अगर कोई पुरुष बच्चा नहीं होता, तभी संपत्ति अन्य वारिसों को मिलती थी।
यह व्यवस्था 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act, 1956) के लागू होने से बदल गई। इस कानून ने हिंदुओं के लिए उत्तराधिकार के नियमों को संहिताबद्ध किया और उत्तराधिकार के वैधानिक अधिकार पेश किए। बाद में, 2005 के संशोधन ने बेटियों को बेटों के बराबर सहदायिक अधिकार दिए।
हालांकि, न्यायपालिका ने लगातार यह माना है कि 1956 का कानून और 2005 का संशोधन केवल तभी लागू होते हैं जब उत्तराधिकार उस कानून के लागू होने के बाद खुला हो। इसका मतलब है कि इन संशोधनों को पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है, और मिताक्षरा कानून के तहत पहले से मिले अधिकारों को फिर से नहीं खोला जा सकता।
मिताक्षरा हिंदू लॉ के मुख्य सिद्धांत
यह मामला संपत्ति के बंटवारे से जुड़ा था, जहां एक बेटी ने अपने पिता की जमीन में हिस्सा मांगा था, लेकिन कोर्ट ने मिताक्षरा कानून के पुराने नियमों का हवाला देते हुए उसके दावे को खारिज कर दिया। बता दें कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के बाद, बेटियों को बेटों के समान पैतृक संपत्ति पर अधिकार प्राप्त हुआ है और वे भी बंटवारे की मांग कर सकती हैं।
मिताक्षरा कानून क्या है?मिताक्षरा हिंदू कानून की एक पारंपरिक व्यवस्था है। इसमें संपत्ति का बंटवारा और उत्तराधिकार पूरी तरह से पुरुषों की वंशावली पर आधारित था। चाहे वह पैतृक संपत्ति हो या स्व-अर्जित, वह पुरुषों के जरिए ही आगे बढ़ती थी। बेटी को संपत्ति में हिस्सा तभी मिलता था, जब कोई पुरुष वारिस न हो। कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात को दोहराया कि मिताक्षरा कानून के तहत, पिता की स्व-अर्जित संपत्ति भी केवल उसके पुरुष बच्चों को ही मिलती थी। अगर कोई पुरुष बच्चा नहीं होता, तभी संपत्ति अन्य वारिसों को मिलती थी।
यह व्यवस्था 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act, 1956) के लागू होने से बदल गई। इस कानून ने हिंदुओं के लिए उत्तराधिकार के नियमों को संहिताबद्ध किया और उत्तराधिकार के वैधानिक अधिकार पेश किए। बाद में, 2005 के संशोधन ने बेटियों को बेटों के बराबर सहदायिक अधिकार दिए।
हालांकि, न्यायपालिका ने लगातार यह माना है कि 1956 का कानून और 2005 का संशोधन केवल तभी लागू होते हैं जब उत्तराधिकार उस कानून के लागू होने के बाद खुला हो। इसका मतलब है कि इन संशोधनों को पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है, और मिताक्षरा कानून के तहत पहले से मिले अधिकारों को फिर से नहीं खोला जा सकता।
मिताक्षरा हिंदू लॉ के मुख्य सिद्धांत
- पुत्र को पिता की संयुक्त पारिवारिक संपत्ति का जन्म से ही सह-स्वामी अधिकार प्राप्त होता था।
- परिवार के पुरुष सदस्यों के बीच, चार पीढ़ियों (बेटा, पौत्र, और परपोता) तक संपत्ति का साझा स्वामित्व होता था।
- एक पुत्र अपने हिस्से की मांग कर सकता है और यहां तक कि बंटवारे के लिए पिता के विरुद्ध भी मुकदमा कर सकता है।
- यदि किसी सहदायिक की मृत्यु हो जाती है, तो उसका हिस्सा स्वतः ही जीवित सहदायिकों को मिल जाता है, न कि उसके उत्तराधिकारियों को।
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