लखनऊ: उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ सरकार ने गन्ना किसानों को लेकर बड़ा फैसला किया है। पेराई सत्र 2025-26 के लिए राज्य परामर्शित मूल्य में वृद्धि की गई है। अगैती प्रजाति के गन्ने का मूल्य 400 रुपये प्रति क्विंटल और सामान्य प्रजाति का मूल्य 390 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। पहले अगैती का भाव 370 रुपये और सामान्य प्रजाति का 360 रुपये प्रति क्विंटल था। सीएम योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को इस वृद्धि की घोषणा की। सरकार की उम्मीद है कि इस वृद्धि से किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी। पिछले कुछ वर्षों से लगातार दिख रहा है कि योगी आदित्यनाथ सरकार पेराई सत्र के दौरान या चुनाव से पहले गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी कर रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले गन्ना के राज्य परामर्शित मूल्य में 20 रुपये की वृद्धि की गई थी। इस बार भी इसी के आसपास वृद्धि की उम्मीद जताई जा रही थी। हालांकि, योगी सरकार ने 30 रुपये की वृद्धि कर गन्ना किसानों को बड़ा लाभ दिया है।
क्यों अहम हैं गन्ना किसान?उत्तर प्रदेश की राजनीति में गन्ना किसान काफी अहम हैं। गन्ने की मिठास चुनावी स्वाद को बदलने में लगभग हर बार कामयाब होती दिखती है। गन्ना किसानों की नाराजगी का खामियाजा सत्ताधारी दलों को भुगतना पड़ा है। 2007 में गन्ना किसान बसपा के पाले में गए तो पार्टी प्रदेश की सत्ता में आ गई। 2012 में पलटे तो फिर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार बनती दिखी। हालांकि, 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे ने किसानों और समाजवादी पार्टी के बीच दरार बढ़ाई। मोदी लहर भी प्रभावी हुई। असर लोकसभा चुनाव 2014 और यूपी चुनाव 2017 में गन्ना किसानों का एकमुश्त समर्थन भाजपा को मिला। पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की।
दरअसल, प्रदेश की राजनीति में गन्ना और इससे जुड़े किसान हमेशा प्रभावी रहे हैं। प्रदेश की तीन दर्जन से अधिक सीटों पर गन्ना किसानों का दखल माना जाता है। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 27 और पूर्वांचल की 9 सीटें शामिल हैं। इस प्रकार लगभग 36 लोकसभा सीटों पर गन्ना किसान प्रभावी हैं। इस हिसाब से माना जाए तो 180 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां गन्ना किसान निर्णायक भूमिका में होते हैं।
2019 से बदलती दिखी स्थितिगन्ना किसान भले ही राजनीतिक पेराई से सत्ता रूपी चाशनी देते रहे हों, लेकिन वे कभी भी एक तरफ झुकते नहीं दिखे। अगर उनके हित में फैसला होता है और वह सरकार के कार्यों से संतुष्ट होते हैं तो सीधे-सीधे हुए एक बड़ा राजनीतिक संदेश चुनावी मैदान से निकलता दिखता है। वरना बदलाव गन्ना किसानों की नीयति रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में गन्ना किसानों का बकाया बड़ा मुद्दा था। इसका प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देखने को मिला था। भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव में उस स्तर की सफलता नहीं मिल पाई, जो 2014 या 2017 में मिली थी।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद किसान आंदोलन और इसके असर ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में गन्ना किसाने की भूमिका को बढ़ाया। इसका असर 2022 के विधानसभा चुनाव से दिखना शुरू हुआ और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यह प्रभावी रहा।
बदली है सरकार की रणनीति2024 के चुनाव ने भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजाई। इसके बाद लगातार योगी आदित्यनाथ सरकार किसानों के बकाए के मुद्दे पर गंभीर होती दिखी है। बकायों के भुगतान को लेकर लगातार चीनी मिलों से लेकर सहकारी समितियां तक एक्शन में हैं। गन्ना किसानों के हित को लेकर सीधे संबंधित जिलों के डीएम को दिशा निर्देश जारी किए जा रहे हैं। अब राज्य परामर्शित मूल्य में वृद्धि के जरिए किसानों की आय बढ़कर योगी आदित्यनाथ सरकार उनके बीच अपनी पकड़ को फिर मजबूत करने की कोशिश करती दिख रही है।
योगी सरकार का यह दांव चला तो 180 सीटों पर सीधे भारतीय जनता पार्टी को बढ़त मिलती दिख सकती है। यही वजह है कि किसान नेता से लेकर भारतीय जनता पार्टी के समर्थक दल योगी सरकार के इस निर्णय की सराहना करते दिख रहे हैं। गन्ना मूल्य में 30 रुपये की वृद्धि का बड़ा असर होता दिखने वाला है।
विपक्ष की अपनी राजनीतिगन्ना किसानों को साधने में योगी सरकार जुटी हुई है। वहीं, राज्य परामर्शित मूल्य में वृद्धि ने विपक्ष की मुश्किलें बढ़ाई हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह ने योगी सरकार के फैसले पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि जिस हिसाब से महंगाई बढ़ी है, उस लिहाज से गन्ना मूल्यों में वृद्धि नहीं हुई है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार किसानों के साथ धोखा कर रही है। हालांकि, किसानों के हित की बात करने वाली राष्ट्रीय लोकदल ने योगी सरकार की तारीफ की है। केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी ने कहा कि योगी सरकार का निर्णय तारीफ के योग्य है। उन्होंने किसानों की मेहनत का मान रखा है।
किसान मोर्चा के अध्यक्ष कामेश्वर सिंह ने भी सीएम योगी की तारीफ की। उन्होंने कहा कि 30 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने का मूल्य बढ़ा है, यह बेहतर कदम है। उन्होंने कहा कि 2017 में सीएम बनने के बाद से योगी आदित्यनाथ ने गन्ने के राज्य परामर्शित मूल्य में 85 रुपये की वृद्धि अब तक की है। इससे पहले 2007 से 2012 तक मायावती सरकार और 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव के 10 साल के कार्यकाल में गन्ने की कीमत में 65 रुपये की वृद्धि हुई थी। सरकार किसानों के हित में निर्णय ले रहे हैं।
भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि योगी सरकार ने दाम बढ़ाया है, लेकिन महंगाई भी तो बढ़ रही है। गन्ने की कीमत को तो 400 के पार कर देते। उन्होंने कहा कि अब आगे चुनाव का समय है। पहले भी 30-40 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि होती रही है। इस बार तो जो हुआ, वह हुआ। आगे इसमें अधिक वृद्धि होनी चाहिए।
क्यों अहम हैं गन्ना किसान?उत्तर प्रदेश की राजनीति में गन्ना किसान काफी अहम हैं। गन्ने की मिठास चुनावी स्वाद को बदलने में लगभग हर बार कामयाब होती दिखती है। गन्ना किसानों की नाराजगी का खामियाजा सत्ताधारी दलों को भुगतना पड़ा है। 2007 में गन्ना किसान बसपा के पाले में गए तो पार्टी प्रदेश की सत्ता में आ गई। 2012 में पलटे तो फिर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार बनती दिखी। हालांकि, 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे ने किसानों और समाजवादी पार्टी के बीच दरार बढ़ाई। मोदी लहर भी प्रभावी हुई। असर लोकसभा चुनाव 2014 और यूपी चुनाव 2017 में गन्ना किसानों का एकमुश्त समर्थन भाजपा को मिला। पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की।
दरअसल, प्रदेश की राजनीति में गन्ना और इससे जुड़े किसान हमेशा प्रभावी रहे हैं। प्रदेश की तीन दर्जन से अधिक सीटों पर गन्ना किसानों का दखल माना जाता है। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 27 और पूर्वांचल की 9 सीटें शामिल हैं। इस प्रकार लगभग 36 लोकसभा सीटों पर गन्ना किसान प्रभावी हैं। इस हिसाब से माना जाए तो 180 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां गन्ना किसान निर्णायक भूमिका में होते हैं।
2019 से बदलती दिखी स्थितिगन्ना किसान भले ही राजनीतिक पेराई से सत्ता रूपी चाशनी देते रहे हों, लेकिन वे कभी भी एक तरफ झुकते नहीं दिखे। अगर उनके हित में फैसला होता है और वह सरकार के कार्यों से संतुष्ट होते हैं तो सीधे-सीधे हुए एक बड़ा राजनीतिक संदेश चुनावी मैदान से निकलता दिखता है। वरना बदलाव गन्ना किसानों की नीयति रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में गन्ना किसानों का बकाया बड़ा मुद्दा था। इसका प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देखने को मिला था। भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव में उस स्तर की सफलता नहीं मिल पाई, जो 2014 या 2017 में मिली थी।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद किसान आंदोलन और इसके असर ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में गन्ना किसाने की भूमिका को बढ़ाया। इसका असर 2022 के विधानसभा चुनाव से दिखना शुरू हुआ और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यह प्रभावी रहा।
बदली है सरकार की रणनीति2024 के चुनाव ने भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजाई। इसके बाद लगातार योगी आदित्यनाथ सरकार किसानों के बकाए के मुद्दे पर गंभीर होती दिखी है। बकायों के भुगतान को लेकर लगातार चीनी मिलों से लेकर सहकारी समितियां तक एक्शन में हैं। गन्ना किसानों के हित को लेकर सीधे संबंधित जिलों के डीएम को दिशा निर्देश जारी किए जा रहे हैं। अब राज्य परामर्शित मूल्य में वृद्धि के जरिए किसानों की आय बढ़कर योगी आदित्यनाथ सरकार उनके बीच अपनी पकड़ को फिर मजबूत करने की कोशिश करती दिख रही है।
योगी सरकार का यह दांव चला तो 180 सीटों पर सीधे भारतीय जनता पार्टी को बढ़त मिलती दिख सकती है। यही वजह है कि किसान नेता से लेकर भारतीय जनता पार्टी के समर्थक दल योगी सरकार के इस निर्णय की सराहना करते दिख रहे हैं। गन्ना मूल्य में 30 रुपये की वृद्धि का बड़ा असर होता दिखने वाला है।
विपक्ष की अपनी राजनीतिगन्ना किसानों को साधने में योगी सरकार जुटी हुई है। वहीं, राज्य परामर्शित मूल्य में वृद्धि ने विपक्ष की मुश्किलें बढ़ाई हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह ने योगी सरकार के फैसले पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि जिस हिसाब से महंगाई बढ़ी है, उस लिहाज से गन्ना मूल्यों में वृद्धि नहीं हुई है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार किसानों के साथ धोखा कर रही है। हालांकि, किसानों के हित की बात करने वाली राष्ट्रीय लोकदल ने योगी सरकार की तारीफ की है। केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी ने कहा कि योगी सरकार का निर्णय तारीफ के योग्य है। उन्होंने किसानों की मेहनत का मान रखा है।
किसान मोर्चा के अध्यक्ष कामेश्वर सिंह ने भी सीएम योगी की तारीफ की। उन्होंने कहा कि 30 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने का मूल्य बढ़ा है, यह बेहतर कदम है। उन्होंने कहा कि 2017 में सीएम बनने के बाद से योगी आदित्यनाथ ने गन्ने के राज्य परामर्शित मूल्य में 85 रुपये की वृद्धि अब तक की है। इससे पहले 2007 से 2012 तक मायावती सरकार और 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव के 10 साल के कार्यकाल में गन्ने की कीमत में 65 रुपये की वृद्धि हुई थी। सरकार किसानों के हित में निर्णय ले रहे हैं।
भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि योगी सरकार ने दाम बढ़ाया है, लेकिन महंगाई भी तो बढ़ रही है। गन्ने की कीमत को तो 400 के पार कर देते। उन्होंने कहा कि अब आगे चुनाव का समय है। पहले भी 30-40 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि होती रही है। इस बार तो जो हुआ, वह हुआ। आगे इसमें अधिक वृद्धि होनी चाहिए।
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