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Chhath Puja 2025: छठ पर केवल दिल्ली से खुलने वाली नहीं, बिहार से आने वाली ट्रेनों में भी काफी भीड़, क्यों?

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दिल्ली/पटना: छठ पर गांव जाने के लिए अपनी बहन के साथ सुबह 7:00 बजे घर से निकला। ऐप से बुक ऑटो के पास पहुंचा और बहन को अपनी मातृभाषा मैथिली में कहा कि बैग पीछे डाल दो। इसी बीच ऑटो वाले ने भी मैथिली में कहा कि ओटीपी बता दीजिए। मतलब वो भी बिहार का था। यात्रा शुरू हुई और मैंने उससे पूछा कि आप छठ पर गांव नहीं गए। उसने कहा कि नहीं, मेरा पूरा परिवार यहीं रहता है और हम यहीं छठ पूजा मनाते हैं। इस बीच हम ट्रेन के अपने समय से लगभग 1 घंटा पहले नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गए। जैसा की सुन रहा था कि स्टेशन पर काफी भीड़ चल रही है, वैसा कुछ भी देखने को नहीं मिला।


फिर ऐसे शुरू हुई छठ पर घर-यात्राशायद इसकी वजह ये हो कि शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व की शुरुआत हुई और जिनको जाना था अधिकांश जा चुके थे। हमारी टिकट छठ के लिए चलाई गई स्पेशल वंदे भारत ट्रेन में थी। हम स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे और प्लेटफार्म पर छठ का एक ही गाना बार-बार बजने से परेशान भी हो रहे थे। इसी बीच हमारी ट्रेन आई और हम अपनी-अपनी सीटों पर बैठ गए। हमारी ट्रेन प्लेटफार्म नंबर 15 पर खड़ी थी। इसी दौरान 16 नंबर पर पटना से संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस आई। उस ट्रेन की भीड़ देखकर हमारे कोच में बैठे लोग दंग रह गए। किसी ने कहा कि इस ट्रेन में आखिर इतनी भीड़ अभी क्यों है भाई। मतलब छठ पर तो प्रवासी अपने गांव जाते हैं, ये आ क्यों रहे हैं।



पटना से आने ट्रेनों में भी खचाखच भीड़हमारी ट्रेन अपनी निर्धारित समय सुबह 8:35 पर पटना के लिए खुल चुकी थी। अभी ट्रेन शिवाजी ब्रिज स्टेशन पर ही पहुंची थी कि हमें पटना से आने वाली एक और खास ट्रेन श्रमजीवी एक्सप्रेस दिखाई दी। उस ट्रेन में तो भीड़ का और भी बुरा हाल था। उत्सुकता बढ़ी तो पटना से छठ के समय चलने वाली ट्रेनों में टिकट की स्थिति चेक किया। ये चौंकाने वाला था। राजधानी में थर्ड एसी में 25 अक्टूबर को वेटिंग 37, 26 अक्टूबर को 17 और 27 अक्टूबर को वेटिंग 15 दिखी। सम्पूर्ण क्रांति एक्सप्रेस में थर्ड एसी में 25 अक्टूबर को वेटिंग 55, 26 अक्टूबर को 47 और 27 अक्टूबर को 30 दिखी। दूसरे राज्यों से चलकर पटना से होकर गुजरने वाली कुछ राजधानी एक्सप्रेस में तो इन तारीखो में वेटिंग भी नहीं मिल रही हैं।


दिल्ली-एनसीआर में भी शानदार तैयारीअब मुझे अपने ऑटो वाले भैया की बात याद आ गई। वो छठ पर गांव नहीं जाते हैं। ऐसे कई और भी लोग हैं जो दिल्ली एनसीआर में ही रहकर छठ मनाते हैं। इस दौरान गांव से उनके परिजन ही दिल्ली आ जाते हैं। पटना या बिहार से छठ के दौरान आने वाली ट्रेनों में भीड़ की शायद यही वजह हो। बहरहाल, ट्रेन गाजियाबाद से आगे निकल चुकी थी और पूरी रफ्तार के साथ मंजिल की ओर दौड़ रही थी। इस बीच मेरे पीछे वाली सीट पर बैठी एक महिला अपने पति से लगातार बहस में उलझी हुई हैं। वो कह रही हैं कि सीट तो कई खाली दिख रही हैं। फिर तुमने एजेंट से तीन टिकट के 4500 एक्स्ट्रा देकर टिकट क्यों लिए। खुद से नहीं ले सकते थे क्या। भाई साहब समझा रहे हैं कि टिकट वेटिंग थी। एजेंट ने कहीं से जुगाड़ लगाकर कन्फर्म करवाया है।


छठ तो ठीक है, मगर वोटिंग का क्या?इस बीच वेटर ने आकर खाना सर्व कर दिया है। सभी पैकेट खोलकर खाने लगे हैं। लेकिन महिला नहीं खा रही हैं। भाई साहब नहीं खाने की वजह पूछते हैं तो वो बताती हैं कि आज नहाय-खाय है। इसमें लहसुन-प्याज डाला होगा। इस बीच मैं भी अपने बगल वाली सीट पर बैठे भाई साहब से बातचीत में मशगूल हो चुका हूं। इस दौरान मैंने पूछा कि वापसी कब की है। कहा- 4 नवंबर को। मैंने पूछा कि वोट नहीं डालेंगे। कहा- नहीं। मैं हरियाणा का वोटर हूं। इस दौरान एक और भाई साहब बातचीत में शामिल हो गए। उनसे वापसी की तारीख पूछी तो 28 अक्टूबर बताया। उनसे भी पूछा कि वोट नहीं डालेंगे तो कहा कि इतनी छुट्टी किसके पास है। वैसे ये वंदे भारत ट्रेन थी। इसमें अधिकांश एलीट लोग थे और शायद एलीट लोग वोट वगैरह में इतनी दिलचस्पी नहीं लेते, ना ही किसी के प्रभाव में आते हैं। वैसे ये प्रवासी इस बार बिहार चुनाव में प्रभाव तो डालेंगे ही।
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