'The Age of Extraction' टिम वू (Tim Wu) की नई किताब है, जिसमें उन्होंने बिग टेक (अल्फाबेट, मेटा, एमेजॉन जैसी विशाल टेक्नॉलजी कंपनियां) के इकॉनमी पर असर की ओर ध्यान दिलाया है। वह यह भी याद दिलाते हैं कि जिस इंटरनेट को विकेंद्रीकरण के वादे के साथ लाया गया था, उसकी हकीकत आज क्या है।
बिग टेक का कंट्रोलशुरू में कहा गया था कि यह सूचना के प्रवाह में सबकी भागीदारी सुनिश्चित करेगा। छोटे-बड़े का फर्क मिटाएगा। ये सारे दावे गलत साबित हुए। हो यह रहा है कि बड़ी टेक्नॉलजी कंपनियां सब कुछ नियंत्रित कर रही हैं। वे कॉम्पिटिशन को खत्म कर रही हैं और इस तरह से इकॉनमी की शक्ल भी बदल रही है। इसी विषय पर ग्रीस के पूर्व वित्त मंत्री और वामपंथी विचारक यानिस वरौफाकिस ने technofeudalism नाम की किताब भी लिखी है, जिसकी खूब चर्चा हुई।
कॉरपोरेट पावर
टिम वू इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी और मोनोपॉली के दुष्प्रभावों पर पहले भी कुछ किताबें लिख विचार विंडो चुके हैं। 2010 में उनकी 'The Master Switch', 2016 में 'The Attention Merchants' और 2018 में 'The Curse of Bigness' नाम की किताबें आईं थीं। आखिरी किताब में उन्होंने बढ़ते कॉरपोरेट पावर के खतरों को लेकर आगाह किया था।
मुनाफा बढ़ाने पर ध्यान
'The Age of Extraction' में वह लिखते है कि इंटरनेट युग और बिग टेक को लेकर चाहे जो भी वादे किए जाएं, सच्चाई यही है कि उनसे आम लोगों का हित नहीं सध रहा है। 2004 में गूगल ने यह शपथ ली थी कि वह दुनिया को बेहतर बनाएगी। जब गूगल को विज्ञापन देने वालों और उसके यूजर्स के हित टकराने लगे तो उसने अपने ग्राहकों की अनदेखी की। उसका पूरा ध्यान भी अधिक से अधिक मुनाफा कमाने और शेयरहोल्डर्स को खुश करने पर लग गया।
आरामतलब इंसान
टिम वू लिखते हैं कि ऐसी कंपनियों के अच्छे इरादे ज्यादा समय तक बने नहीं रहते। उनके लिए वह इकॉनमिक स्ट्रक्चर मायने रखता है, जिससे उनका फायदा हो। टिम वू के मुताबिक, ये स्ट्रक्चर इसलिए अहम है क्योंकि लोगों का व्यवहार एक जैसी सिचुएशन और इन्सेंटिव दिए जाने पर एक तरह का ही होता है इंसान अच्छे होते है या बुरे, इस बारे में तो वह कुछ नहीं कहते, लेकिन टिम वू ने यह जरूर लिखा है कि हमें आरामतलबी अच्छी लगती है।
झूठा निकला वादा
इसलिए आज ऑनलाइन शॉपिंग या ई-कॉमर्स का मार्केट दुनिया भर में तेजी से बढ़ा है और आगे इसके बढ़ते रहने की संभावना है। एमेजॉन, ऊबर जैसे प्लैटफॉर्म बिजनेस किसी भी तरह की खरीद को आसान बनाकर अरबों डॉलर कमा रहे हैं।
स्मॉल बिजनेस का घाटा
एमेजॉन जैसी कंपनियां अपने प्लैटफॉर्म पर लोकप्रिय वेंडर के प्रॉडक्ट्स की नकल कर रही हैं और उन्हें कम कीमत पर बेचकर मुनाफाखोरी में लगी है। इससे छोटे वेंडरों-कारोबारियों को मुश्किल हो रही है। कई बार ऐसी कंपनियां प्रतिद्वंद्वियों का बिजनेस खरीद लेती हैं और इससे बराबर की प्रतिस्पर्धा की बात गलत साबित होती है। इन कंपनियों को प्रतिद्वंद्वी अपना बिजनेस इस वजह से बेचते हैं क्योंकि उनके लिए बिग टेक से मुकाबला करना मुश्किल होता है। बड़ी कंपनियों के पास अगाध पैसा है, इसलिए वे छोटे प्रतिद्वंद्वियों को हराने के लिए लंबे समय तक नुकसान में भी धंधा कर सकती हैं। यह सहूलियत छोटी कंपनियों के पास नहीं होती। बिग टेक की इन हरकतों को रोकने के लिए बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की खातिर बेहतर नीतियां बनानी होंगी।
बिग टेक का कंट्रोलशुरू में कहा गया था कि यह सूचना के प्रवाह में सबकी भागीदारी सुनिश्चित करेगा। छोटे-बड़े का फर्क मिटाएगा। ये सारे दावे गलत साबित हुए। हो यह रहा है कि बड़ी टेक्नॉलजी कंपनियां सब कुछ नियंत्रित कर रही हैं। वे कॉम्पिटिशन को खत्म कर रही हैं और इस तरह से इकॉनमी की शक्ल भी बदल रही है। इसी विषय पर ग्रीस के पूर्व वित्त मंत्री और वामपंथी विचारक यानिस वरौफाकिस ने technofeudalism नाम की किताब भी लिखी है, जिसकी खूब चर्चा हुई।
कॉरपोरेट पावर
टिम वू इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी और मोनोपॉली के दुष्प्रभावों पर पहले भी कुछ किताबें लिख विचार विंडो चुके हैं। 2010 में उनकी 'The Master Switch', 2016 में 'The Attention Merchants' और 2018 में 'The Curse of Bigness' नाम की किताबें आईं थीं। आखिरी किताब में उन्होंने बढ़ते कॉरपोरेट पावर के खतरों को लेकर आगाह किया था।
मुनाफा बढ़ाने पर ध्यान
'The Age of Extraction' में वह लिखते है कि इंटरनेट युग और बिग टेक को लेकर चाहे जो भी वादे किए जाएं, सच्चाई यही है कि उनसे आम लोगों का हित नहीं सध रहा है। 2004 में गूगल ने यह शपथ ली थी कि वह दुनिया को बेहतर बनाएगी। जब गूगल को विज्ञापन देने वालों और उसके यूजर्स के हित टकराने लगे तो उसने अपने ग्राहकों की अनदेखी की। उसका पूरा ध्यान भी अधिक से अधिक मुनाफा कमाने और शेयरहोल्डर्स को खुश करने पर लग गया।
आरामतलब इंसान
टिम वू लिखते हैं कि ऐसी कंपनियों के अच्छे इरादे ज्यादा समय तक बने नहीं रहते। उनके लिए वह इकॉनमिक स्ट्रक्चर मायने रखता है, जिससे उनका फायदा हो। टिम वू के मुताबिक, ये स्ट्रक्चर इसलिए अहम है क्योंकि लोगों का व्यवहार एक जैसी सिचुएशन और इन्सेंटिव दिए जाने पर एक तरह का ही होता है इंसान अच्छे होते है या बुरे, इस बारे में तो वह कुछ नहीं कहते, लेकिन टिम वू ने यह जरूर लिखा है कि हमें आरामतलबी अच्छी लगती है।
झूठा निकला वादा
इसलिए आज ऑनलाइन शॉपिंग या ई-कॉमर्स का मार्केट दुनिया भर में तेजी से बढ़ा है और आगे इसके बढ़ते रहने की संभावना है। एमेजॉन, ऊबर जैसे प्लैटफॉर्म बिजनेस किसी भी तरह की खरीद को आसान बनाकर अरबों डॉलर कमा रहे हैं।
स्मॉल बिजनेस का घाटा
एमेजॉन जैसी कंपनियां अपने प्लैटफॉर्म पर लोकप्रिय वेंडर के प्रॉडक्ट्स की नकल कर रही हैं और उन्हें कम कीमत पर बेचकर मुनाफाखोरी में लगी है। इससे छोटे वेंडरों-कारोबारियों को मुश्किल हो रही है। कई बार ऐसी कंपनियां प्रतिद्वंद्वियों का बिजनेस खरीद लेती हैं और इससे बराबर की प्रतिस्पर्धा की बात गलत साबित होती है। इन कंपनियों को प्रतिद्वंद्वी अपना बिजनेस इस वजह से बेचते हैं क्योंकि उनके लिए बिग टेक से मुकाबला करना मुश्किल होता है। बड़ी कंपनियों के पास अगाध पैसा है, इसलिए वे छोटे प्रतिद्वंद्वियों को हराने के लिए लंबे समय तक नुकसान में भी धंधा कर सकती हैं। यह सहूलियत छोटी कंपनियों के पास नहीं होती। बिग टेक की इन हरकतों को रोकने के लिए बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की खातिर बेहतर नीतियां बनानी होंगी।
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