नई दिल्ली: जीएसटी कटौती का फायदा उठाते हुए लोगों ने इस बार नवरात्रि में जमकर कारों की खरीदारी की। अधिकांश ग्राहक दिवाली पर डिलीवरी चाहते हैं लेकिन कंपनियों की अलग ही समस्या है। दरअसल, चीन ने एक बार फिर से रेयर अर्थ मेटल्स दुर्लभ के ट्रेड पर नियमों को सख्त कर दिया है। मॉडर्न इकॉनमी में इनकी काफी अहमियत है और इनकी सप्लाई चेन पर पूरी तरह चीन का कब्जा है। चीन अपने इस दबदबे को एक रणनीतिक हथियार के तौर पर यूज कर रहा है। उसके इस ने भारत समेत उन सभी देशों के लिए और भी मुश्किल खड़ी कर रहा है जो पहले से ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारी टैरिफ से परेशान हैं।
चीन ने 9 अक्टूबर को रेयर अर्थ मेटल्स और उनसे जुड़ी तकनीकों पर अपने निर्यात प्रतिबंधों का दायरा बढ़ा दिया। नए नियमों के तहत अब निर्यातकों को रेयर अर्थ मेटल्स के खनन, उन्हें गलाने, अलग करने, मैग्नेट बनाने, रीसाइक्लिंग और उनकी प्रोडक्शन लाइन के रखरखाव, मरम्मत या अपग्रेड के लिए इस्तेमाल होने वाली तकनीकों और उपकरणों को भेजने के लिए सरकारी लाइसेंस लेना होगा। साथ ही विदेशी सहयोग पर भी रोक लगाई गई है। अब चीनी कंपनियों और विदेशी साझेदारों को रेयर अर्थ से जुड़े विदेशी प्रोजेक्ट्स में शामिल होने के लिए मंजूरी लेनी होगी।
भारत से सर्टिफिकेट की मांग
चीन के इन नए प्रतिबंधों का भारत पर सबसे ज्यादा असर होगा। इसकी वजह यह है कि इस बार चीन ने भारत से यह आश्वासन मांगा है कि भारत को सप्लाई किए गए हेवी रेयर अर्थ मैग्नेट्स अमेरिका को सप्लाई नहीं होंगे और न ही हथियार बनाने में इनका इस्तेमाल होगा। इसके लिए भारत को एंड-यूजर सर्टिफिकेट देना होगा। कई भारतीय कंपनियों ने ऐसे सर्टिफिकेट जमा कर दिए हैं लेकिन भारत ने अभी तक चीन की सभी शर्तों को औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है।
हालांकि भारत और चीन के बीच कूटनीतिक बातचीत से तनाव कम होता दिख रहा था लेकिन चीन ने भारतीय कंपनियों, खासकर हेवी रेयर अर्थ मैग्नेट के आवेदन पर मंजूरी रोक रखी है। अगस्त में चीन ने कुछ चुनिंदा वस्तुओं के निर्यात पर लगे प्रतिबंधों को हटा दिया था जिसमें भारत के लिए रेयर अर्थ मैग्नेट भी शामिल थे। लेकिन यह किसी बड़े बदलाव का संकेत नहीं था, बल्कि यह दिखाता है कि चीन कैसे अपने राजनीतिक और रणनीतिक लक्ष्यों के हिसाब से आपूर्ति को चालू या बंद करके एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है।
इंडस्ट्री की समस्या
रेयर अर्थ एलिमेंट्स को आर्थिक रूप से निकालना और शुद्ध करना मुश्किल होता है। चीन दुनिया के 60-70% रेयर अर्थ का उत्पादन करता है वहीं मैग्नेट बनाने और प्रोसेसिंग में उसकी हिस्सेदारी 90% से अधिक है। इनका यूज हाई-परफॉरमेंस मोटर, विंड टरबाइन, इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर, डिफेंस सिस्टम और इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) में होता है। इनकी सप्लाई या प्रोडक्शन में कोई भी बाधा कई तरह की इंडस्ट्री में बड़ी समस्या पैदा कर सकती है।
चीन के निर्यात प्रतिबंधों ने भारत के उद्योगों पर दबाव डालना शुरू कर दिया है और कई क्षेत्रों में सप्लाई की कमी होने लगी है। खासकर ईवी बनाने वाली कंपनियों को रेयर अर्थ मैग्नेट की कमी और देरी का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री को भी मैग्नेट और पुर्जों की कमी के कारण उत्पादन में देरी का सामना करना पड़ रहा है। एसबीआई ने एक एनालिसिस में कहा है कि चीनी प्रतिबंधों के कारण ट्रांसपोर्ट इक्विपमेंट, मशीनरी, बेस मेटल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों में भी समस्या पैदा कर सकते हैं।
चीन ने 9 अक्टूबर को रेयर अर्थ मेटल्स और उनसे जुड़ी तकनीकों पर अपने निर्यात प्रतिबंधों का दायरा बढ़ा दिया। नए नियमों के तहत अब निर्यातकों को रेयर अर्थ मेटल्स के खनन, उन्हें गलाने, अलग करने, मैग्नेट बनाने, रीसाइक्लिंग और उनकी प्रोडक्शन लाइन के रखरखाव, मरम्मत या अपग्रेड के लिए इस्तेमाल होने वाली तकनीकों और उपकरणों को भेजने के लिए सरकारी लाइसेंस लेना होगा। साथ ही विदेशी सहयोग पर भी रोक लगाई गई है। अब चीनी कंपनियों और विदेशी साझेदारों को रेयर अर्थ से जुड़े विदेशी प्रोजेक्ट्स में शामिल होने के लिए मंजूरी लेनी होगी।
भारत से सर्टिफिकेट की मांग
चीन के इन नए प्रतिबंधों का भारत पर सबसे ज्यादा असर होगा। इसकी वजह यह है कि इस बार चीन ने भारत से यह आश्वासन मांगा है कि भारत को सप्लाई किए गए हेवी रेयर अर्थ मैग्नेट्स अमेरिका को सप्लाई नहीं होंगे और न ही हथियार बनाने में इनका इस्तेमाल होगा। इसके लिए भारत को एंड-यूजर सर्टिफिकेट देना होगा। कई भारतीय कंपनियों ने ऐसे सर्टिफिकेट जमा कर दिए हैं लेकिन भारत ने अभी तक चीन की सभी शर्तों को औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है।
हालांकि भारत और चीन के बीच कूटनीतिक बातचीत से तनाव कम होता दिख रहा था लेकिन चीन ने भारतीय कंपनियों, खासकर हेवी रेयर अर्थ मैग्नेट के आवेदन पर मंजूरी रोक रखी है। अगस्त में चीन ने कुछ चुनिंदा वस्तुओं के निर्यात पर लगे प्रतिबंधों को हटा दिया था जिसमें भारत के लिए रेयर अर्थ मैग्नेट भी शामिल थे। लेकिन यह किसी बड़े बदलाव का संकेत नहीं था, बल्कि यह दिखाता है कि चीन कैसे अपने राजनीतिक और रणनीतिक लक्ष्यों के हिसाब से आपूर्ति को चालू या बंद करके एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है।
इंडस्ट्री की समस्या
रेयर अर्थ एलिमेंट्स को आर्थिक रूप से निकालना और शुद्ध करना मुश्किल होता है। चीन दुनिया के 60-70% रेयर अर्थ का उत्पादन करता है वहीं मैग्नेट बनाने और प्रोसेसिंग में उसकी हिस्सेदारी 90% से अधिक है। इनका यूज हाई-परफॉरमेंस मोटर, विंड टरबाइन, इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर, डिफेंस सिस्टम और इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) में होता है। इनकी सप्लाई या प्रोडक्शन में कोई भी बाधा कई तरह की इंडस्ट्री में बड़ी समस्या पैदा कर सकती है।
चीन के निर्यात प्रतिबंधों ने भारत के उद्योगों पर दबाव डालना शुरू कर दिया है और कई क्षेत्रों में सप्लाई की कमी होने लगी है। खासकर ईवी बनाने वाली कंपनियों को रेयर अर्थ मैग्नेट की कमी और देरी का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री को भी मैग्नेट और पुर्जों की कमी के कारण उत्पादन में देरी का सामना करना पड़ रहा है। एसबीआई ने एक एनालिसिस में कहा है कि चीनी प्रतिबंधों के कारण ट्रांसपोर्ट इक्विपमेंट, मशीनरी, बेस मेटल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों में भी समस्या पैदा कर सकते हैं।
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