नई दिल्ली: 30 साल पहले। 31 अगस्त 1995 को भारत में पहली बार किसी मुख्यमंत्री की हत्या हुई। पंजाब के तत्कालीन सीएम बेअंत सिंह को बम विस्फोट करके मार दिया गया। इस मामले में एक दोषी बलवंत सिंह राजोआना को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। लेकिन 3 दशक गुजर जाने के बाद भी अब तक उसे फांसी नहीं दी गई है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में हत्यारे की सजा माफ करने के लिए याचिका दाखिल की गई है, जिस पर हाल ही में सुनवाई हुई।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई। मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एनवी अंजारिया और जस्टिस संदीप मेहता ने केंद्र सरकार से तल्ख लहजे में पूछा कि कोर्ट जब दोषी बलवंत को फांसी की सजा सुना चुका है तो इस आदेश पर अब तक अमल क्यों नहीं किया गया। सर्वोच्च अदालत ने यह भी पूछा कि फांसी न दिए जाने के पीछे आखिर कौन जिम्मेदार है।
तर्क, दोषी की तरफ से नहीं दी गई याचिकादरअसल, बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह के लिए याचिका दाखिल कर कहा गया है कि वह करीब दो दशकों से मौत की सजा काट रहा है। इस बीच अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि राष्ट्रपति ने दोषी की याचिका पर कोई फैसला नहीं लिया। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि याचिका कैदी की तरफ से नहीं दी गई है। बल्कि अलग-अलग लोगों की तरफ दायर की गई है। हालांकि, पीठ इस तर्क पर सहमत नहीं हुई।
तीन दशकों से सलाखों के पीछे है बलवंतबलवंत सिंह की तरफ से सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने पक्ष रखा। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन दोषियों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है, जो सिर्फ दो साल से ही फांसी की सजा काट रहे थे। बलवंत की बात करते हुए रोहतगी ने कहा कि उनका मुवक्किल तीन दशकों से सलाखों के पीछे है। वह दो दशक से मौत की सजा के साये में है। अगर सुप्रीम कोर्ट उसकी सजा को उम्रकैद में बदल देता है, तो वह जेल से रिहा हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवालारोहतगी ने सुनवाई के दौरान देविंदर पाल सिंह भुल्लर की मौत की सजा को कम करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि भुल्लर 1993 में दिल्ली में हुए बम विस्फोटों का दोषी था, जिसमें नौ लोग मारे गए थे। वह 2001 से मौत की सजा पर था। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। राष्ट्रपति के दया याचिका खारिज करने के बाद भी ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि याचिका के निष्पादन में लंबी देरी हुई।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई। मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एनवी अंजारिया और जस्टिस संदीप मेहता ने केंद्र सरकार से तल्ख लहजे में पूछा कि कोर्ट जब दोषी बलवंत को फांसी की सजा सुना चुका है तो इस आदेश पर अब तक अमल क्यों नहीं किया गया। सर्वोच्च अदालत ने यह भी पूछा कि फांसी न दिए जाने के पीछे आखिर कौन जिम्मेदार है।
तर्क, दोषी की तरफ से नहीं दी गई याचिकादरअसल, बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह के लिए याचिका दाखिल कर कहा गया है कि वह करीब दो दशकों से मौत की सजा काट रहा है। इस बीच अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि राष्ट्रपति ने दोषी की याचिका पर कोई फैसला नहीं लिया। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि याचिका कैदी की तरफ से नहीं दी गई है। बल्कि अलग-अलग लोगों की तरफ दायर की गई है। हालांकि, पीठ इस तर्क पर सहमत नहीं हुई।
तीन दशकों से सलाखों के पीछे है बलवंतबलवंत सिंह की तरफ से सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने पक्ष रखा। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन दोषियों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है, जो सिर्फ दो साल से ही फांसी की सजा काट रहे थे। बलवंत की बात करते हुए रोहतगी ने कहा कि उनका मुवक्किल तीन दशकों से सलाखों के पीछे है। वह दो दशक से मौत की सजा के साये में है। अगर सुप्रीम कोर्ट उसकी सजा को उम्रकैद में बदल देता है, तो वह जेल से रिहा हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवालारोहतगी ने सुनवाई के दौरान देविंदर पाल सिंह भुल्लर की मौत की सजा को कम करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि भुल्लर 1993 में दिल्ली में हुए बम विस्फोटों का दोषी था, जिसमें नौ लोग मारे गए थे। वह 2001 से मौत की सजा पर था। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। राष्ट्रपति के दया याचिका खारिज करने के बाद भी ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि याचिका के निष्पादन में लंबी देरी हुई।
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