तभी तो, जब मेरी दूसरी बेटी हुई, तो बधाई देने के बजाय लोग सलाह देने लगे- 'कोई बात नहीं, दिल छोटा मत करो…तीसरी बार कोशिश करना, क्या पता बेटा हो जाए।’ अफसोस की बात यह है कि यह 'सलाहों' का सिलसिला अभी तक जारी है।
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कंसीव करने के बाद लोग देने लगें दुआएं

ज्यादातर लोगों की तरह ही, मैंने भी अपनी प्रेग्नेंसी की खबर पहले तीन महीनों तक किसी को नहीं बताई। डॉक्टर ने भी सलाह दी थी कि पहले ट्राइमेस्टर के बाद ही यह खुशखबरी शेयर करें। ऐसे में समय बीतता गया और जब पहली तिमाही पूरी हुई, तो मैंने और रजत ने सोचा कि चलो अब वक्त आ गया है कि इस गुडन्यूज को परिवार और करीबी लोगों से बांट दिया जाए।
इसीलिए सबसे पहले हम दोनों ने ही अपनी फैमिली में यह जिक्र किया कि हम दोनों फिर से पैरेंट बनने वाले हैं। सिया का भाई या बहन आने वाला है। यह बात सुनते ही फौरन मेरी ननद ने मुझे टोकते हुए कहा कि भाभी अब तो सिर्फ सिया का भाई ही आना चाहिए।
वह बोलीं- मैं तो भगवान से ही यही दुआ करूंगी। ननद की बात सुनकर मैं उस वक्त कुछ बोली तो नहीं। लेकिन एक पल को ख्याल जरूर आया कि एक एमएनसी में काम करने के बाद इनकी सोच ऐसी है।
Girl (3)
हमारे लिए बच्चा अहम है, जेंडर नहीं

खैर, यही सब सुनते-सुनते मेरी प्रेग्नेंसी के नौ महीने बीत गए और डिलीवरी का वक्त आ गया। हम दोनों बेहद खुश थे। मैंने और रजत ने बच्चे के लिए जो भी शॉपिंग की थी, वह इस तरह की थी कि चाहे बेटा हो या बेटी, सब कुछ उसके लिए काम आ सके। हमारे लिए तो बस हमारा बच्चा ही सबसे बड़ी खुशी था, उसका जेंडर नहीं।
आ गया डिलीवरी का वक्त
उस दिन को मैं और रजत शायद कभी भूल ही नहीं पाएंगे। 10 अप्रैल की रात थी, अचानक मुझे तेज दर्द उठने लगा और बार-बार बाथरूम जाने की इच्छा हो रही थी। रजत ने तुरंत कहा- ‘अब इंतजार नहीं करना है, सीधा डॉक्टर के पास चलते हैं।’ उन्होंने गाड़ी निकाली और मम्मी के साथ हम हॉस्पिटल पहुंचे।
डॉक्टर ने मेरी हालत देखते ही कहा- ‘वॉटर ब्रेक हो चुका है, अब बस डिलीवरी का समय है।’ प्रोसेस शुरू हुआ और करीब दो घंटे बाद, हमारी जिंदगी में एक नन्ही-सी राजकुमारी का आगमन हो गया।
बेटी होने पर लोग जताने लगे अफसोस

बेटी के आने से हम सब बेहद खुश थे, लेकिन यह खुशी ज्यादा देर टिक नहीं पाई। बेटी के जन्म की खबर जैसे ही रिश्तेदारों और परिचितों तक पहुंची तो लोग कॉल्स और मुलाकातों में बधाई से ज्यादा अफसोस जताने लगे।
कोई कहता- ‘अरे… बेटा होता तो अच्छा था’, तो कोई तसल्ली देता- ‘कोई बात नहीं, तीसरी बार ट्राई कर लेना।’ ये सुनकर दिल भीतर तक दुखता, लेकिन मैं बस खामोश रह जाती है।
परिवार में दिखा इसका असर
रिश्तेदारों और परिवार की बातें जैसे जहर की तरह धीरे-धीरे घर के माहौल में घुल गईं थी। इन बातों का असर रजत के मम्मी-पापा पर भी हो गया… या फिर यूं कहूं कि कहीं न कहीं उनके दिल में भी यह चाहत पहले से ही थी कि अगली बार बेटा ही हो। तभी तो उन्होंने भी सुबह-शाम कहना शुरू कर दिया - ‘रजत अकेला बेटा है पूरे खानदान में… बाकी सब चाचा-ताऊ की तो लड़कियां ही हैं, और अब इसके भी दूसरी बार बेटी हो गई। काश… बेटा हो जाता।’
मैं खुद को ही दोषी मानने लगी
रजत के परिवार से यह सब सुनते ही मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। क्योंकि अभी तक मुझे रजत के परिवार से इस तरह की चीजें सुनने को नहीं मिली थीं… लेकिन उस दिन लगा, जैसे सबके लिए एक चीज अहम है और वो है बेटा। उस वक्त मैं खुद को ही दोषी मानने लगी। इतनी पढी- लिखी भी होकर सोचने लगी कि मैं कैसी हूं कि एक बेटा नहीं कर पाई।
ब्रेस्टमिल्क प्रोडक्शन पर पडा असर
यह सोच-सोचकर मैंने खाना-पीना लगभग छोड़ ही दिया। न ठीक से खाती, न पानी पीती। पूरी-पूरी रात जागकर बच्ची को दूध पिलाती और इन बातों के बारे में सोचते-सोचते आंसू बहाती रहती। धीरे-धीरे इसका असर मेरे शरीर पर दिखने लगा और ब्रेस्टमिल्क प्रोडक्शन भी रुक गया।
मैं अपनी ही बच्ची को ठीक से फीड तक नहीं करा पा रही थी। मेरी यह हालत देखकर रजत से देखा नहीं गया। वो हर दिन मुझे समझाते कि मैं यह सब बातें अपने दिमाग से निकाल दूं, लेकिन मैं ऐसा कर नहीं पा रही थी।
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मेरी दोनों बेटियां मेरी पूरी दुनिया हैं
रजत ने एक दिन थोड़े सख्त लहजे में कहा, “मैं दुनिया को दोष क्या दूं, जब मेरी अपनी बीवी ही बेटा-बेटा सोचकर दिन-रात रो रही है। पहले खुद तो खुश होना शुरू करो, फिर दूसरों को हक से बोलो कि मेरे लिए मेरी बेटी ही मेरा गर्व, मेरी ताकत और मेरी पूरी दुनिया है। रजत की यह बात मेरे दिल को जैसे झकझोर गई। मुझे एहसास हुआ कि अगर मैं खुद अपनी बेटी को पूरे गर्व और खुशी से अपनाऊंगी, तभी दुनिया भी उसे उसी नजर से देखेगी।
उस दिन के बाद मैंने ठान लिया कि किसी की भी सोच मेरी बेटी के प्रति मेरे प्यार और सम्मान को कम नहीं कर सकती। इस तरह से धीरे-धीरे खुद को संभाला और अपनी नन्ही-सी जान के साथ हर लम्हा मुस्कुराते हुए जीना शुरू कर दिया। मेरी दोनों बेटियां हम दोनों की पूरी दुनिया हैं।
(यह कहानी मधुलिका शर्मा की है, जो पेशे से इंवेट मैनेजर है।)
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