नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने देश को फिर से महान बनाने पर अड़े हैं। लेकिन उनकी रणनीति से अमेरिका दुनिया में अलग-थलग पड़ता जा रहा है। दुनिया भर के सेंट्रल बैंक डॉलर और यूएस ट्रेजरी पर अपनी निर्भरता कम करते जा रहे हैं। साल 1996 के बाद यह पहला मौका है जब ग्लोबल सेंट्रल बैंकों में सोने की हिस्सेदारी यूएस ट्रेजरी से ज्यादा हो गई है। इसी तरह डॉलर की हिस्सेदारी में भी गिरावट आई है।
ग्लोबल इंटरनेशनल रिजर्व में डॉलर की हिस्सेदारी 2025 की पहली तिमाही में 2% कम होकर 42% रह गई है जो 30 साल में सबसे कम है। इस दौरान सोने की हिस्सेदारी 3% बढ़कर 24% हो गई है। लगातार तीसरे साल सोने की हिस्सेदारी बढ़ी है। इस दौरान यूरो की हिस्सेदारी में कोई बदलाव नहीं हुआ है और यह 15 फीसदी पर स्थिर है।
क्यों हो रहा है यह शिफ्ट?
दुनिया के सेंट्रल बैंकों के रिजर्व में अब डॉलर के बाद सोना सबसे बड़ा एसेट है। यूक्रेन युद्ध के बाद से ही दुनिया भर के देश अपने रिजर्व में डॉलर की हिस्सेदारी कम कर रहे हैं और सोने की हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों के डर और अमेरिका के बढ़ते कर्ज के कारण भी लोग डॉलर से किनारा कर रहे हैं। हालांकि ग्लोबल रिजर्व में डॉलर का दबदबा अब भी बना हुआ है।
ग्लोबल इंटरनेशनल रिजर्व में डॉलर की हिस्सेदारी 2025 की पहली तिमाही में 2% कम होकर 42% रह गई है जो 30 साल में सबसे कम है। इस दौरान सोने की हिस्सेदारी 3% बढ़कर 24% हो गई है। लगातार तीसरे साल सोने की हिस्सेदारी बढ़ी है। इस दौरान यूरो की हिस्सेदारी में कोई बदलाव नहीं हुआ है और यह 15 फीसदी पर स्थिर है।
क्यों हो रहा है यह शिफ्ट?
दुनिया के सेंट्रल बैंकों के रिजर्व में अब डॉलर के बाद सोना सबसे बड़ा एसेट है। यूक्रेन युद्ध के बाद से ही दुनिया भर के देश अपने रिजर्व में डॉलर की हिस्सेदारी कम कर रहे हैं और सोने की हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों के डर और अमेरिका के बढ़ते कर्ज के कारण भी लोग डॉलर से किनारा कर रहे हैं। हालांकि ग्लोबल रिजर्व में डॉलर का दबदबा अब भी बना हुआ है।
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