Nishikant Dubey on Supreme Court: भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला करते हुए कहा कि अगर देश में कानून बनाने का काम सुप्रीम कोर्ट करेगा तो संसद की कोई जरूरत नहीं है. दुबे के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है. गोड्डा से चार बार सांसद रह चुके दुबे ने यह बयान उस बीच आया जब सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को लेकर सुनवाई चल रही है. इस दौरान अदालत ने 'यूजर द्वारा वक्फ' जैसी धाराओं पर सवाल उठाए थे, जिस पर केंद्र सरकार ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि अगली सुनवाई तक कुछ प्रावधानों को लागू नहीं किया जाएगा.
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, "अगर सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाने हैं, तो संसद को बंद कर देना चाहिए." उन्होंने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जाकर फैसले ले रहा है और संसद द्वारा पारित कानूनों को रद्द कर रहा है.
क़ानून यदि सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन बंद कर देना चाहिये
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) April 19, 2025
राष्ट्रपति को निर्देश देने पर उठाए सवाल
दुबे ने राष्ट्रपति के अधिकारों पर भी कोर्ट की टिप्पणियों पर नाराजगी जताते हुए कहा, "कैसे आप नियुक्ति करने वाले को निर्देश दे सकते हैं? राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं और संसद देश में कानून बनाती है. आप संसद को आदेश देंगे?" उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 368 का हवाला देते हुए कहा कि कानून बनाना केवल संसद का कार्य है, न्यायपालिका का नहीं.
सुप्रीम कोर्ट पर गंभीर आरोप
निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि न्यायपालिका देश में "धार्मिक युद्ध" भड़काने की जिम्मेदार है. उन्होंने कहा, "अगर हर चीज के लिए सुप्रीम कोर्ट ही अंतिम स्थान बन गया है, तो फिर संसद और राज्य विधानसभाओं की कोई जरूरत नहीं रह जाती." दुबे ने वक्फ अधिनियम में 'यूजर द्वारा वक्फ' प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट के नजरिए पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा, "राम मंदिर के मामले में कोर्ट ने दस्तावेजी सबूत मांगे थे, लेकिन वक्फ मामले में ऐसा नहीं किया जा रहा है."
न्यायपालिका की 'ओवररीच' पर चिंता
बीजेपी सांसद ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अदालत ने समलैंगिकता को अपराधमुक्त करने और आईटी एक्ट की धारा 66(ए) को हटाने जैसे निर्णय लेकर अपने दायरे से बाहर काम किया है. उन्होंने कहा कि यह 'ज्यूडिशियल ओवररीच' का स्पष्ट उदाहरण है.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की भी टिप्पणी
इस मुद्दे पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी हाल ही में न्यायपालिका की आलोचना करते हुए कहा था, "न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका सभी कार्य एक साथ कर रही हैं. क्या हम एक 'सुपर संसद' की ओर बढ़ रहे हैं?" उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रपति को निर्देश देने पर चिंता जताई.
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