एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति 'टैरिफ वॉर' के मूड में हैं, तो दूसरी तरफ अमेरिकी अधिकारी कुछ और ही कह रहे हैं। अमेरिकी विदेश विभाग के एक अधिकारी ने भारत को एक रणनीतिक साझेदार बताया है। अधिकारी ने कहा कि अमेरिका भारत के साथ "पूरी स्पष्टता और ईमानदारी" के साथ संवाद करता है और (अमेरिकी) राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने और उसके व्यापार असंतुलन को लेकर अपनी चिंताओं को वाशिंगटन के साथ स्पष्ट रूप से साझा किया है।
'अमेरिका ने अपनी चिंताओं को साझा किया है'
विदेश विभाग के प्रमुख उप प्रवक्ता टॉमी पिगॉट ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "भारत के संदर्भ में, मैं कह सकता हूँ कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने व्यापार असंतुलन और रूस से तेल खरीदने को लेकर अपनी चिंताओं को स्पष्ट रूप से साझा किया है। आपने देखा होगा कि उन्होंने इस पर सीधी कार्रवाई भी की है।" वह 31 अगस्त से 1 सितंबर तक शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा से संबंधित एक सवाल का जवाब दे रहे थे। यह सात साल बाद प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा होगी।
'भारत एक रणनीतिक साझेदार है'
पिगॉट ने कहा, "भारत एक रणनीतिक साझेदार है, जिसके साथ हम खुले और स्पष्ट संवाद करते हैं। यह भविष्य में भी जारी रहेगा।" उन्होंने कहा कि अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी इस बारे में बात की है। पिगॉट ने कहा, "विदेश नीति में हर मुद्दे पर 100 प्रतिशत सहमति होना संभव नहीं है। लेकिन, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि राष्ट्रपति व्यापार असंतुलन और भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद को लेकर चिंतित हैं और उन्होंने इस संबंध में कदम भी उठाए हैं।"
'यह ईमानदार, पूर्ण और स्पष्ट संवाद का मामला है'
जब पिगॉट से पूछा गया कि क्या अमेरिका और भारत के बीच बिगड़ते संबंधों को लेकर कोई चिंता है और क्या नई दिल्ली के चीन के करीब आने की संभावना है, तो उन्होंने कहा कि यह इस प्रशासन की वास्तविक चिंताओं के बारे में "ईमानदार, पूर्ण और स्पष्ट संवाद" का मामला है और राष्ट्रपति ने इनके बारे में बहुत स्पष्ट रूप से बात की है और कदम भी उठाए हैं। उन्होंने कहा, "इन चिंताओं का समाधान करना महत्वपूर्ण है। यह एक स्पष्ट संवाद का हिस्सा है।" उन्होंने कहा, "अंततः, यह स्पष्ट और पूर्ण वार्ता का मामला है और अमेरिकी हितों को आगे बढ़ाने के लिए इसका यही अर्थ है। वास्तव में इसका यही अर्थ है कि हमें जिन चिंताओं का समाधान करना है, उनके समाधान के लिए साझेदारों के साथ पूर्ण कूटनीतिक वार्ता करनी होगी।"
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