भगवान शिव सृजन और मोक्ष के देवता हैं। कलियुग में भगवान शिव सदैव सर्वव्यापी हैं। कलियुग में भगवान शिव प्रत्यक्ष देवता हैं। जिनके दर्शन मनुष्य को प्रतिदिन शिवलिंग के रूप में होते हैं। कलियुग के बारे में कहा जाता है कि सभी युगों में कलियुग का रूप सबसे भयानक होगा। साथ ही, कलियुग में ईश्वर को पाना उतना ही सरल है। इसका वर्णन कई पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। शिवपुराण में कलियुग से जुड़े रहस्यों के बारे में भी बताया गया है। शिवपुराण में बताया गया है कि कलियुग में रहते हुए धन-संपत्ति के सुख के साथ मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी। इसके बारे में विस्तार से बताया गया है। आइए जानते हैं कि कलियुग में भगवान शिव की पूजा कैसे व्यक्ति को धनवान बना सकती है।
कलियुग में धन-संपत्ति का सुख कैसे प्राप्त करें?
शिवपुराण में बताया गया है कि कलियुग में मनुष्य के लिए शिवलिंग पूजन से बढ़कर कुछ भी श्रेष्ठ नहीं है। यह शास्त्रों का एक निश्चित सिद्धांत है। शिवपुराण में सूतजी ने बताया है कि शिवलिंग भोग और मोक्ष प्रदान करता है। अर्थात् शिवलिंग की पूजा से व्यक्ति को सांसारिक सुखों के साथ-साथ मोक्ष भी प्राप्त होता है। अर्थात् कलियुग में जो भी व्यक्ति शिवलिंग की पूजा करेगा, उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाएँगे। साथ ही व्यक्ति को धन-धान्य का सुख भी प्राप्त होता है।
शिवलिंग कितने प्रकार के होते हैं?
शिवपुराण में बताया गया है कि शिवलिंग तीन प्रकार के होते हैं। उत्तम, मध्यम और अधम शिवलिंग। जो शिवलिंग चार अंगुल ऊँचा और देखने में अत्यंत सुंदर तथा वेदी से सुसज्जित हो, उस शिवलिंग को महर्षियों ने उत्तम कहा है। उसका आधा भाग मध्यम और आधा भाग अधम माना गया है।
शिवलिंग की पूजा कौन कर सकता है?
शिवपुराण में बताया गया है कि सभी मनुष्यों को शिवलिंग की पूजा का अधिकार है। वैदिक मंत्रों आदि से शिवलिंग की पूजा करना लाभकारी होता है। स्त्रियों को भी शिवलिंग की पूजा का पूर्ण अधिकार है। लेकिन वैदिक विधि के अनुसार शिवलिंग पूजा को सर्वोत्तम माना गया है। शिवपुराण में आगे बताया गया है कि भगवान शिव के कथनानुसार, शिवलिंग की पूजा वैदिक विधि से ही करनी चाहिए।
शिवपुराण शिवलिंग पूजन विधि
इस प्रकार, नैवेद्य से भगवान शिव का पूजन करने के बाद, वहाँ उनकी त्रिभुवनमयी आठ मूर्तियों का पूजन करें। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चंद्रमा और यजमान, ये भगवान शिव की आठ मूर्तियाँ कही गई हैं। इन मूर्तियों के साथ शर्व, धावा, रुद्र, उय, भीम, ईश्वर, महादेव और पशुपति नामों से पूजन करें। तत्पश्चात, चंदन, चावल और बेलपत्र लेकर, ईशान आदि क्रम से भगवान शिव के परिवार की भक्तिपूर्वक पूजा करें।
शिव परिवार में कौन-कौन हैं?
ईशान, नंदी, चंड महाकाल, भृंगी, वृष, स्कंद, कपर्दीश्वर, सोम और शुक्र - ये दस शिव परिवार हैं, जिनकी पूजा क्रमशः ईशान आदि से आरंभ करके दसों दिशाओं में करनी चाहिए। तत्पश्चात भगवान शिव के सम्मुख वीरभद्र और उनके पीछे कीर्ति मुख की पूजा करें तथा ग्यारह रुद्रों की विधिपूर्वक पूजा करें। इसके बाद पंचाक्षर-मंत्र नमः शिवाय का जाप करें और शतरुद्रिय स्तोत्र, विविध प्रकार की स्तुतियों और शिवपंचांग का पाठ करें। तत्पश्चात परिक्रमा और नमस्कार करके शिवलिंग का विसर्जन करना चाहिए।
शिवलिंग की पूजा किस दिशा में करनी चाहिए?
शिवपुराण के अनुसार, शिवलिंग के पूर्व दिशा की ओर मुख करके नहीं बैठना चाहिए। क्योंकि, वह दिशा भगवान शिव के सम्मुख है। शिवलिंग के उत्तर दिशा में भी न बैठें। क्योंकि, वह भगवान शिव का बायाँ भाग है। जहाँ माता पार्वती विराजमान हैं। शिवलिंग के पश्चिम दिशा में भी नहीं बैठना चाहिए क्योंकि वह पूज्य देवता का पृष्ठ भाग होता है। दक्षिण दिशा में ही शिवलिंग की पूजा करना सर्वोत्तम माना जाता है।
शिवलिंग की पूजा कैसे करें?
शिवपुराण के अनुसार, दक्षिण दिशा में उत्तराभिमुख बैठकर शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। विद्वान पुरुष को भस्म त्रिपुण्ड्र लगाकर, रुद्राक्ष की माला धारण करके और बिल्वपत्र लेकर ही भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए, इनके बिना नहीं। यदि भस्म उपलब्ध न हो तो मिट्टी से माथे पर त्रिपुण्ड्र लगाना चाहिए। इस प्रकार कलियुग में शिवलिंग की पूजा करने से व्यक्ति को धन, सुख की प्राप्ति होती है और मोक्ष का मार्ग भी खुलता है।
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