भागलपुर, 7 नवंबर (Udaipur Kiran) . जिले का गोपालपुर विधानसभा सीट जदयू के बागी विधायक गोपाल मंडल के कारण काफी दिलचस्प हो गया है. उल्लेखनीय है कि बीते चार चुनावों में इस सीट पर जदयू के गोपाल मंडल विधायक रहे हैं. लेकिन इस बार यहां का राजनीतिक माहौल कुछ अलग देखा जा रह है. इस बार सीट पर महागठबंधन, जनसुराज और बागी गोपाल मंडल मैं.
जदयू के बड़बोले विधायक गोपाल मंडल का इस बार टिकट कट चुका है और वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में डटे हैं. दो दशक से गंगा और कोशी की त्रासदी झेलती गोपालपुर विधानसभा क्षेत्र की आबादी वोट के नाम पर ही बिदक उठती है. विस्थापन के दर्द से कराहती गोपालपुर की बड़ी आबादी आज भी एक अदद घर के लिए बिलख रही है.
कटाव का स्थायी निदान नहीं हो रहा है. करोड़ों रुपया पानी में बहाया जा चुका है. महापर्व छठ के संपन्न होने के साथ ही गोपालपुर की राजनीति पारा काफी उफान पर है. अब तक जो माहौल शांत दिखाई दे रहा था, वह अब नारे, जनसभाओं और चौपालों की गूंज से भर गया है. विभिन्न दलों के स्टार प्रचारकों का उड़नखटोला भी गोपालपुर की धरती पर मंडराने लगा है. जिससे प्रचार में भी काफी तेजी आ गई है.
यहां Chief Minister नीतीश कुमार की भी सभा हो चुकी है. गोपालपुर विधानसभा में करीब 2.76 लाख मतदाता हैं. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब 1952 में गोपालपुर, पौरपैंती विधानसभा का हिस्सा हुआ करता था, तब यहां के पहले विधायक बने थे स्व सियाराम सिंह (कांग्रेस). 1957 में गोपालपुर को अलग विधानसभा क्षेत्र का दर्जा मिला और यहां सीपीआई के कामरेड मणिराम सिंह ‘गुरुजी’ ने जीत दर्ज कर लाल झंडा फहराया.
इसके बाद सत्ता कभी काग्रेस, कभी कम्युनिस्टों और फिर भाजपा-राजद के बीच झूलती रही. मदन प्रसाद सिंह ने कांग्रेस के लिए लंबे समय तक इस क्षेत्र में पकड़ बनाए रखी. 1990 में पहली बार भाजपा ने इस क्षेत्र में दस्तक दी, जब ज्ञानेश्वर यादव ने जीत दर्ज की. 1995 से 2005 तक राजद के डॉ. आर. के. राणा और उनके पुत्र अमित राणा ने सत्ता संभाली. 2005 से लेकर अब तक जदयू के नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल का दबदबा रहा. उनके बेबाक और विवादित बयानों के बावजूद उन्होंने लगातार जीत हासिल की, जिससे गोपालपुर को जदयू का अभेद्य दुर्ग कहा जाने लगा. इस बार यहां का समीकरण बदला हुआ है. जदयू ने अपने मौजूदा विधायक नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल को टिकट से वंचित करते हुए पूर्व सांसद बुलो मंडल पर भरोसा जताया है.
बागी गोपाल मंडल अब निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में हैं. यह बगावत जदयू का समीकरण बिगाड़ता दिख रहा है. वहीं महागठबंधन से प्रेम सागर उर्फ डब्लू यादव (वीआईपी) और जनसुराज से मंकेश्वर सिंह उर्फ मंटू सिंह भी चुनावी मैदान में हैं. दोनों ही गठबंधन जनता के बीच बदलाव और नई राजनीति के नारे के साथ उतर रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में सड़कों, रोजगार और शिक्षा को लेकर असंतोष की चर्चा है, जबकि गोपाल मंडल का लोकल कनेक्शन और बुलो मंडल का अनुभव-दोनों ही जनता को अपनी ओर खींचने की कोशिश में हैं. हालांकि बुलो मंडल अब तक सबके दिल में उतर नहीं पाए हैं. उन्हें भीतरघात का भय सता रहा है. वहीं, महागठबंधन और जनसुराज की टीमें बूथ स्तर तक रणनीति बनाने में जुटी हैं. गोपालपुर का यह चुनाव महज एक सीट का नहीं, बल्कि कई राजनीतिक समीकरणों की Examination है. क्या गोपाल मंडल की बगावत एनडीए को भीतर से कमजोर करेगी. क्या महागठबंधन या जनसुराज इस ऐतिहासिक सीट पर नया इतिहास रच पाएंगे. यह सब तय करेगा 2.76 लाख मतदाताओं का फैसला, जो आने वाले 11 नवंबर को गोपालपुर की राजनीतिक दिशा निर्धारित करेगा.
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(Udaipur Kiran) / बिजय शंकर
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