– पहले जातियों के समीकरण में उलझी थी राजनीति, अब बदल रही सोच
पटना, 05 नवम्बर (Udaipur Kiran) . Bihar की धरती फिर एक बार इतिहास की ओर देख रही है. जहां पहले राजनीति जातियों के समीकरण में उलझी रहती थी, अब युवाओं और आम जनता की सोच बदल रही है. वोट अब केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि संस्कृति, एकता और परंपरा की रक्षा के लिए दिया जाएगा. यह विचार Bihar के मतदाता राजन, धीरज, अनिल, शशिकांत, कपिल मुनी जैसे अन्य मतदाताओं का है.
Bihar के मतदाताओं ने (Udaipur Kiran) से कहा कि जब कोई राष्ट्र अपनी जड़ों से जुड़ता है तो उसकी दिशा भी तय हो जाती है. Bihar की धरती, जिसने बुद्ध का संदेश दिया, जनक की नीति सिखाई और चाणक्य की दृष्टि दी, वही आज फिर एक बार आत्मबोध के मोड़ पर खड़ी है. इस बार का चुनाव सिर्फ सरकार बनाने का नहीं, बल्कि भारत की आत्मा को जगाए रखने का सवाल बन चुका है.
सभ्यता बनाम समीकरण
हर बार की तरह इस बार भी कई दल जातियों का हिसाब जोड़ने में लगे हैं कि कौन यादव, कौन ब्राह्मण, कौन कुर्मी कौन कुशवाहा, कौन पासवान…. पर आम जन का मन अब यह पूछ रहा है कि कब तक इस पवित्र धरती को जातियों में बाँटोगे? यह तो ऋषियों और क्रांतिकारियों की भूमि है. गांव-गांव में मतदाताओं की ओर से यह स्वर उठ रहा है कि अब बात समाज की नहीं, संस्कृति की होनी चाहिए. यह वही संस्कृति है जिसने भारत को हजारों वर्षों तक जोड़े रखा. विविधता में एकता,भक्ति में शक्ति और कर्म में राष्ट्रीयता.
हम भारत हैं-जात नहीं, जाति का आधार हम हैं
जनपद गया के छात्र अभिषेक ने कहा कि हम सिर्फ वोटर नहीं,भारत की सभ्यता के वाहक हैं. यह नई सोच राजनीति की बुनियाद बदल रही है. जहां पहले नारे जातीय थे, अब संवाद सांस्कृतिक हो रहे हैं. लोग मंदिरों, परंपराओं और त्योहारों को राजनीति से नहीं, संस्कारों से जोड़ना चाहते हैं.
Bihar की मिट्टी में है राष्ट्र की सुगंध
रोहतास के किसान चन्द्रमा तिवारी कहते हैं कि यह वही भूमि है जहां से जय जवान, जय किसान की गूंज उठी थी. यहां हर किसान सुबह खेत में काम करता है और शाम को सूर्यास्त पर दीप जलाता है. यह पूजा नहीं, संस्कृति की निरंतरता है. इसी में भारत की आत्मा बसती है. उन्होंने कहा कि जब हम वोट डालने जाएं तो यह याद रखें कि यह संस्कृति केवल किताबों से नहीं, कर्म से बचती है. वोट उसी को दीजिए जो इस आत्मा का सम्मान करे. जो विभाजन नहीं, विरासत की रक्षा करे.
वोट एक संस्कार है, केवल प्रक्रिया नहीं
राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्र कहते हैं कि लोकतंत्र भारत की खोज नहीं, भारत की परंपरा है. सभा,पंचायत, परामर्श, यह सब हमारी संस्कृति के हिस्से हैं. इसलिए जब मतदाता मतदान केंद्र पर जाता है तो वह केवल राजनीतिक अधिकार नहीं निभाता, बल्कि सभ्यता का संस्कार दोहराता है.
उन्होंने कहा कि भारत की शक्ति उसकी विविधता है, पर उसकी आत्मा उसकी एकता है. जात, मज़हब या भाषा के नाम पर जो विभाजन होता है, वह भारत के मूल स्वभाव के विरुद्ध है. Bihar का मतदाता अब समझ चुका है कि अगर संस्कृति जीवित रहनी है,तो एकता आवश्यक है. राम का नाम केवल पूजा नहीं, आचरण है. बुद्ध का मार्ग केवल ध्यान नहीं, जीवन की दिशा है. यही भारत का सार है धर्म नहीं, धारणा का देश.
उन्होंने कहा कि इस बार का चुनाव किसी दल का नहीं,एक दृष्टि का है. यह दृष्टि कहती है कि भारत को मजबूत बनाइए,उसकी आत्मा को जगाइए. जब हर मतदाता यह सोचकर वोट देगा कि उसका एक मत भारत की सांस्कृतिक अखंडता को बचा सकता है, तब न जात बचेगी न मतभेद. केवल एक भारत बचेगा, जो अपने गौरव, ज्ञान और गंगा की तरह अनवरत बहेगा.
(Udaipur Kiran) / राजेश
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