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एएमयू में जुमे की नमाज़ रोकने, लाठीचार्ज और उत्पीड़न के आरोप: प्रशासन का जवाब क्या?

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संवाददाता: एस. मुनीर

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में फीस वृद्धि के खिलाफ छात्रों का गुस्सा अब चरम पर है। पिछले एक हफ्ते से बाब सैयद पर चल रहा धरना और तेज हो गया है। इस बीच, प्रशासन और छात्रों के बीच तनाव तब और बढ़ गया, जब 4 अगस्त को जुमे की नमाज़ रोकने और पुलिस लाठीचार्ज की घटनाएँ सामने आईं। सबसे गंभीर आरोप छात्राओं ने लगाए हैं, जिन्होंने प्रॉक्टोरियल स्टाफ पर दुर्व्यवहार और उत्पीड़न जैसे संगीन इल्ज़ाम लगाए हैं।

जाँच समितियों पर सवाल

प्रशासन ने इन आरोपों की जाँच के लिए दो समितियाँ बनाई हैं। एक समिति फीस वृद्धि के मुद्दे को देखेगी, जबकि दूसरी 4 अगस्त की घटना की पड़ताल करेगी। लेकिन छात्राओं ने इन समितियों को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि पुरुष-बहुल समिति इस मामले की निष्पक्ष जाँच नहीं कर सकती। छात्राओं ने मांग की है कि यौन उत्पीड़न निवारण अधिनियम 2013 के तहत आंतरिक शिकायत समिति (ICC) ही इसकी जाँच करे। उनका यह भी आरोप है कि महिला कुलपति प्रोफेसर नईमा खातून का यह फैसला न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि छात्राओं की सुरक्षा के प्रति उनकी असंवेदनशीलता को भी दिखाता है।

प्रशासन पर कानून तोड़ने का आरोप

कानून के जानकारों और छात्र नेताओं का कहना है कि एएमयू प्रशासन संसदीय कानून को ठेंगा दिखा रहा है। बीए अर्थशास्त्र की छात्रा अलीशा सैफी ने अपनी निराशा जाहिर करते हुए कहा, “हमें एक महिला कुलपति से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन उनका यह फैसला हमारी उम्मीदों पर पानी फेर रहा है।” छात्रों का मानना है कि प्रशासन का यह रवैया न केवल उनकी मांगों को दबाने की कोशिश है, बल्कि संस्थान की साख को भी ठेस पहुँचा रहा है।

आंदोलन को मिल रहा समर्थन

यह मामला अब और गंभीर हो गया है, क्योंकि छात्रों के समर्थन में कई राजनीतिक और गैर-राजनीतिक संगठन भी खुलकर सामने आ रहे हैं। अलीगढ़ का पढ़ा-लिखा समाज अब यह सवाल उठा रहा है कि क्या एएमयू प्रशासन ने अपनी गरिमा और विश्वसनीयता खो दी है? अगर ऐसा है, तो यह किसी भी शैक्षणिक संस्थान के लिए खतरे की घंटी है। क्या प्रशासन इस आंदोलन को शांत कर पाएगा, या यह विवाद और बड़ा रूप लेगा? यह देखना अभी बाकी है।

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